Wednesday, May 7, 2008

मिले नहीं हो तुम तो...

मिले नहीं हो तुम तो तड़प तहरीर1 बन जाती है
वजा-ए-दिले-गमगीं2 भी रोशनी की लकीर बन जाती है


शामे-ग़मे-हिज्राँ3 तुमको ही ढूँढती हैं निगाहें4
और एक वो वक़्त कि हर शै5 तेरी ही तस्वीर बन जाती है


उठती है जो निदा6 रूह7 से तड़प कर तेरे लिए
फज़ा8 में खोकर तयूर9 की वो सफीर10 बन जाती है


तेरे दर11 के सिम्त12 मायल13 हो भी जाता हूँ तो
तेरी वो सुकूते-जुबाँ14 मेरे क़दमों की जंजीर बन जाती है


गर नज़र आ जाओ तुम कभी रहगुज़र15 में
उठती है जो तेरी तरफ, वो हर इक निगाह शरीर16 बन जाती है


ये गुंचा17, ये शाखे-गुल18, ये मौजे-दरिया19, ये चाँदनी
तुझे देखकर देखूँ जिसे, वो हर इक शै बेनज़ीर20 बन जाती है

देखूँ तुझे तो भी तड़पता हूँ, न देखूँ तुझे तो भी
तिशनगी21 ये दिल की कैसी अनबूझ पीर22 बन जाती है

खनकती है हर वक़्त तेरे ही ख़यालों की बेडियाँ
हर आहो-फुगाँ23 मेरी, एक आहे-असीर24 बन जाती है


1. लेखन, लिखी हुई बात 2. उदास दिल का दर्द 3. जुदाई के ग़म की शाम 4. आँखें 5. वस्तु, चीज़ 6. पुकार 7. आत्मा 8. वातावरण 9. पक्षी-समूह 10. कलरव 11. द्वार, दरवाजा 12. ओर, तरफ 13. प्रवृत्त, उन्मुख 14. जुबाँ पर छाई खामोशी 15. रास्ता 16. नटखट, चंचल 17. कली 18. फूलों की शाख 19. नदी की लहरें 20. बेजोड़, अनुपम 21. प्यास 22. दर्द 23. आह और चीख 24. बंदी/क़ैदी की आह


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