Monday, December 15, 2008

तमन्ना ही रही दिल की...

मेरे लिए तुम कभी मेरे पास आते,
तमन्ना ही रही दिल की-
कोई गीत तुम मेरे लिए भी गाते...

जब भी तुम आए
कोई और था साथ तुम्हारे-
तुम्हारी बातों में, तुम्हारी राहों में
तुम उसी के लिए थे हँसते,
उसी के लिए मुस्कराते...

तुम्हारा हर क़दम
उसी के जानिब उठते रहे
तुम मुझे मगर अपना हमसफ़र कहते रहे-
क्योंकि मैं साथ रहा
उसके घर तक आते-जाते...

मैं अपने आँसू
छुपा लेता था तुम्हें देखकर
मगर सच तो ये है कि-
एक उम्र कट गई,
बस यूँ ही रोते-रुलाते...

बस इतनी-सी बात
कह लूँ आज मैं तुमसे
क्यों तुमने कभी सोचा नहीं-
जिन आँखों में आँसू हों
उनमें क्या ख़्वाब नहीं जगमगाते...?


Friday, December 12, 2008

ज़िंदगी ने एक रोज़ मुझे...

ज़िंदगी ने एक रोज़ मुझे तेरा पता दिया
चंद गुलाब खिले दरम्याँ, साँस-साँस महका दिया

क़तरा-क़तरा पिघलता रहा चाँद आँखों में सारी रात
तेरी हँसी ने जाने ये क्या गुल खिला दिया

ख्वाहिशों की मुंडेर पर पिछली शब कोई परिंदा था
इस दर्द से चहका के भरी नींद से जगा दिया

तेरी राह में काँटे सही मगर मेरे हमसफ़र, कह दो-
तूने मुझे अपना सफर, अपनी मंज़िल, अपना रास्ता दिया


Wednesday, December 10, 2008

बिखरती जुल्फों के जब...

बिखरती जुल्फों के जब पहरे हो जाते हैं
क़ायनात के सारे फूल तेरे चेहरे हो जाते हैं

अंगूठे से यूँ ज़मीं को कुरेदा ना करो
ज़ख्म दिल के हरे हो जाते हैं

नीची निगाहों से दिल पे ना करो चोट
जज्बात मेरे और गहरे हो जाते हैं

सुना है- इश्क़ में पड़ते हैं जब दो दिल
सारे लम्हात सुनहरे हो जाते हैं


Monday, December 8, 2008

कोशिशें बेहतर, मुसलसल कर...

कोशिशें बेहतर, मुसलसल कर  
ज़िंदगी मुअम्मा सही, हल कर 

इस दुनिया में तेरे दुश्मन बहुत हैं 
 दिल, जरा सम्हल कर 

ज़िंदगी रेहन न रख अँधेरे के 
गुम हुआ नहीं है शम्स ढल कर 

दुनिया खड़ी है इंतज़ार में तेरे 
दायरे से अपने आ तो निकल कर 

मुनासिब है एक चाँद हो सब के लिए 
क्यों ना ढूँढें उसे चल कर 

बहुत हो गया चलना बच-बच के 
 देखें दुनिया को बदल कर 


Friday, December 5, 2008

लेकर हाथों में वो आईना...

लेकर हाथों में वो आईना पूछते हैं
मुझसे मेरी ज़िंदगी का मायना पूछते हैं

रोशनी अपने हिस्से की उन्हें दे चुका
फिर भी किसे कहते हैं चाहना- पूछते हैं

इस मासूमियत को आखिर क्या कहिए
क्यूँ भूल गया हूँ मैं हँसना, पूछते हैं

जिन लबों ने कभी आने को कहा नहीं
उन्ही लबों से, तुम आए क्यूँ ना- पूछते हैं

यूँ के जैसे मुझे पहचानते ही नहीं
कब से हो तुम मेरे आशना पूछते हैं

उफ्फ़! ये अदा, ये शोखी, ये अना
क्या है तेरी ज़िंदगी मेरे बिना, पूछते हैं


कहने को कह गए कई बात...

कहने को कह गए कई बात ख़ामोशी से
कटते-कटते कट ही गई रात ख़ामोशी से

न शोर-ए-हवा, न आवाज़-ए-बर्क़ कोई
निगाहों में अपनी हर दिन बरसात ख़ामोशी से

शायद तुम्हें ख़बर न हो लेकिन यूँ भी
बयाँ होते हैं कई जज्बात ख़ामोशी से

दिल की दुनिया भी कितनी ख़ामोश दुनिया है
किसी शाम हो गई इक वारदात ख़ामोशी से

माईले-सफर हूँ, बुझा-बुझा तन्हा-तन्हा
पहलू में लिए दर्द की कायनात ख़ामोशी से

मुट्ठी में रेत उठाये चला था जैसे मैं
आहिस्ता-आहिस्ता सरकती गई हयात ख़ामोशी से