Saturday, September 20, 2008

अश्क़ नहीं वो...

अश्क़ नहीं वो ख़्वाब है आँखों में
महका हुआ कोई गुलाब है आँखों में

ज़र्रा-ज़र्रा नूर की बारिश है
एक क़तरा माहताब है आँखों में

प्यार के फलसफे, प्यार की बातें
प्यार की खुली किताब है आँखों में

रूह हो जैसे प्यास की एक शमाँ
प्यासी-प्यासी-सी आब है आँखों में

लम्हा-लम्हा मासूमियत है, खामुशी है
गो लरजाँ एक सैलाब है आँखों में

उठ के झुकना, झुक के फिर उठना
हर एक अदा लाज़वाब है आँखों में


तुम आए...

तुम आए, दिलजोई हुई
मुस्कुरा पड़ी आँख रोई हुई

महक उठीं कलियाँ जज्बात की
शबनमे-अश्क़ से धोई हुई

मचल-मचल गईं आज
हसरतें दिल की सोई हुई

शमए-आरजू थी दिल में
बुझी-बुझी, खोई हुई

सोचते रहे ता-उम्रे-फ़िराक़
खता कब हमसे कोई हुई

रो-रोकर तुम्हारी याद में
अफ़साने हुए, गज़लगोई हुई


वफ़ा मिली ना...

वफ़ा मिली ना प्यार मिला ज़िंदगी में
मिला भी तो क्या मिला ज़िंदगी में

न दोस्त, न हमदम, न हमनवा कोई
करें तो किससे करें गिला ज़िंदगी में

दर्द के फूल, दर्द की कलियाँ
दर्द का ही बाग़ खिला ज़िंदगी में

बहुत-बहुत तो मिला नहीं थोड़ा भी
थोड़ा-थोड़ा ही बहुत मिला ज़िंदगी में


दर्द भरे गीत...

दर्द भरे गीत गुनगुनाता हूँ मैं
मेरी आदत है, दर्द में चैन पाता हूँ मैं

कभी तन्हाई ने गले लगाया था मुझको
अब तन्हाई को गले लगाता हूँ मैं

अजीब हालत है- दिल की ही सुनता हूँ
दिल को ही अपनी बात सुनाता हूँ मैं

सुना था- किसी के रोने पर हँसती है दुनिया
लो अब रोकर दुनिया को हँसाता हूँ मैं


Friday, September 19, 2008

बड़ी वफ़ा से...

बड़ी वफ़ा से निभा रहे थे तुम, थोड़ी-सी बेवफाई कर दी
क्या आलम था तेरे उन्स का, और तुम्हीं ने जगहंसाई कर दी

दश्ते-फ़िराक़ में छोड़ कर तन्हा, तुम न जाने कहाँ गुम हुए
वाह मेरे रहनुमा! क्या खूब तुमने मेरी रहनुमाई कर दी

मुजस्सिम हँसी बनकर आये थे मेरी जिंदगी में कभी, मगर
तुम गए तो इस तरह गए, आँखों को नज़्र रुलाई कर दी

ग़म ही शमाँ, ग़म ही रोशनी, ग़म ही परछाईं मेरी
अपने बदले तुमने ग़म से ही मेरी आशनाई कर दी


जब तेरी नज़रों का...

जब तेरी नज़रों का नूर था, मैं कितना मगरूर था
अब लगता है दो दिन का बस वो तो एक सुरूर था

दरअस्ल एक सपना था, पलकों से फिसल गया
आँख खुली तो पाया- मैं तुमसे बहुत, बहुत दूर था

दर्द की जागीर से जाने कब एक क़तरा निकल गया
अश्कों को सम्हाल रखूँ, इतना भी ना शऊर था

तुम्ही कहो- क्या ख़ाक पूरा होता अरमाँ उसका
एक बौने को जो चाँद छूने का फ़ितूर था !!!