Thursday, April 10, 2014

कर्ज़दार

मास्सा'ब एकटक उसके मासूम चेहरे को देख रहे हैं... पिछले १२ घंटों से... उसके सिरहाने से उठने का नाम ही नहीं ले रहे वे। आँखें क्यों नहीं खोलता वह... एक बार... बस एक बार उठकर कह दे वह मास्सा'ब को... 'माफ़ किया'... फिर तो अपनी जान भिड़ा देंगे वो... कुछ नहीं होने देंगे उसे... अपने 'मोहना' को। हाँ... वो गुनहगार हैं मोहना के... क्या जवाब देंगे उसकी माँ को... दुनिया की उन्हें परवाह नहीं, लेकिन मोहना की माँ की विश्वास भरी आँखें... चैन से जीने भी ना देंगी... मरने भी नहीं। मोहना... मोहना की माँ... मोहना के चेहरे में मोहना की माँ का चेहरा... मोहना की माँ के चेहरे में मोहना का चेहरा... सब गड्डमड्ड! क्या हो रहा है उन्हें... बुक्क फटता है उनका... भींगी आँखों के आगे चेहरे नाचते हैं... ता थई... ता थई... और उन्हें रोना आता है।
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मोहना... और उसकी माँ से पहला परिचय याद आता है मास्सा'ब को। मोहना के बाबा प्राय: ज़िक्र किया करते थे मास्सा'ब से... कि वे मोहना को अपने साथ लेते जाएँ... शहर के स्कूल में, जहां मास्सा'ब पढ़ाते थे। पर वे टाल जाते थे... कहाँ तो अपना ही ठौर नहीं बँधा, पराये बच्चे को कहाँ लेकर जाएँगे...? यही कोई तीन बरस पहले मास्सा'ब एम. ए. करके गाँव आये थे... कुछ दिन तक गाँव में ही बच्चों को पढ़ाते रहे... मास्सा'ब हो गए। असली नाम से कोई उन्हें नहीं पुकारता... न कोई बड़ा, न छोटा। पिछले साल खबर लगी, एक दूर के रिश्तेदार ने शहर में स्कूल खोला है... छात्रावास सहित... छोटा सा स्कूल। जुगत भिड़ाई गई... और मास्सा'ब फिर से शहर चले गए। कभी-कभी छुट्टियों में गाँव आते हैं। पिछली दफे जब मास्सा'ब गाँव आए थे, अपने स्कूल हॉस्टल के 'सुपरिंटेंडेंट' का पद पाकर आए थे। किसी को भनक नहीं थी गाँव में, लेकिन उस दिन सबेरे-सबेरे मोहना को लिए मोहना की माँ खुद मास्सा'ब के घर पहुँच गई थी... मोहना को सामने कर अपने आँचल फैला दिए थे... "मेरी झोली भर दो मास्सा'ब... मेरे मोहना को विद्या का दान दे दो... जनम जनम तुम्हारी ऋणी रहूँगी" ! मास्सा'ब ने भर नज़र देखा मोहना की माँ को... पता नहीं क्या दिखा उन्हें उन आँखों में... यह याचना नहीं थी... प्रार्थना नहीं थी... पता नहीं क्या... वे 'ना' नहीं कर पाए...! ***** ***** *****  
मास्सा'ब मोहना के सिर की पट्टी पर हाथ फेरते हैं... टप्प... टप्प ... आँसू गिरते हैं उनकी आँखों से... एक धुँधलका-सा छा जाता है आँखों के सामने... और उस धुँधलके में से दिख पड़ता है उन्हें अपने गाँव का स्टेशन। मोहना की माँ और उसके बाबा आए हैं मोहना को छोड़ने। मोहना को मास्सा'ब के हवाले कर के उसके बाबा कहते हैं "बिन बाप का बच्चा है... अब से आप ही इसके बाप हैं... माँ हैं... गुरु हैं"। मोहना की माँ कुछ नहीं कहती... पर उसकी आँखें बहुत कुछ कहती हैं... आँसू भरी आँखें... पता नहीं क्या है उन आखों में... मास्सा' ब ज्यादा देर नहीं देख पाते उन आखों की ओर... नज़रें झुका लेते हैं। वो आँखें उन्हें अपनी ओर खींचती हैं... फिर भी...। नज़रें झुकाकर ही कहते हैं मास्सा'ब मोहना की माँ से - "भरोसा रखियेगा... आपका बच्चा मेरे पास उसी तरह रहेगा, जैसे अपनी माँ की गोद में। मैं इसे खूब पढ़ाऊँगा... इतना कि एक दिन यह आपका ही नहीं, मेरा भी नाम रोशन करे..." ! ***** ***** ***** सात बरस का मोहना... शोख आँखों वाला मोहना... मिठबोलिया मोहना... हरदम ही शरारत को तैयार... कान उमेथो तो झट से एक झूठ थमा देता... कोई ऐसा बहाना कि मास्सा'ब कितने भी गुस्से में क्यों ना हों... मुस्कुरा पड़ते। सबको मोह लेता था... मोहना। मास्सा'ब बड़े लगन से पढ़ाते थे उसे - हॉस्टल में अपने ही पास सुलाते। बस उसके झूठे बहानो से खीझ होती थी उन्हें... कभी-कभी चपत भी लगा देते थे... पर प्यार भी उतना ही करते थे उसे। वही... उनका प्यारा मोहना... आज उनकी ही करनी से अस्पताल के बेड पर पड़ा है... बार-बार अपने हाथों की ओर देखते हैं मास्सा'ब... ये उनके हाथों क्या हो गया? ***** ***** ***** मोहना के होंठ हिले थे... मास्सा'ब को लगा जैसे मोहना उन्हें ही पुकार रहा हो... 'मास्सा'ब' - हाँ, यही कहकर तो चिल्लाया था मोहना उस वक़्त, जब ये सब दुर्घट घटा था... लेकिन मास्सा'ब कुछ नहीं कर पाए... सारा का सारा दृश्य उनके स्मृति-पटल पर किसी फिल्म के फ्लैशबैक-सा आता जाता है... शाम का समय था - सारे बच्चे छोटे-से मैदान में खेल रहे थे। यह मैदान स्कूल और हॉस्टल के बीच में था और मैदान के एक सिरे पर खड़ी थी एक पुरानी-सी दीवार... बेवजह-बेमक़सद। कितनी बार मालकिन बुढ़िया से कहा भी गया था तुड़वाने को, लेकिन नहीं मानी थी वो। दरअसल स्कूल किराए की जमीन पर बनाया गया था... पास ही बुढ़िया रहती थी, जिसने प्रिंसिपल को ये जमीन किराए पर दे रखा था। मैदान के इस परले सिरे खड़ी दीवार से एक तार निकला हुआ था, जिसे हॉस्टल के छज्जे से बाँधकर अलगनी का काम लिया जाता था। पिछले दिन यह तार टूट गयी थी। मास्सा'ब स्कूल से फुर्सत पाने के बाद इसे जोड़ने में लगे थे। दीवार के साये में कुछेक बच्चे खेल रहे थे... पिछले दिन की बारिश में भींगी कच्ची दीवार... मास्सा'ब ने जरा-सा जोर लगा तार खींचा था कि दीवार भरभराकर गिर पड़ी... और मोहना के साथ-साथ दो-तीन और बच्चों की चीखें गूँज गईं... 'मास्सा'ब' ... ! मास्सा'ब दौड़ पड़े थे, लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी... एक क्षण में क्या कुछ हो गया था... ! ***** ***** ***** कैसे-कैसे लोग हैं इस दुनिया में...? जाने-पहचाने जब काम नहीं देते, अंजाने काम दे जाते हैं। बच्चों की चीखें और धमाके जैसी आवाज़ सुनकर राह चलते कई लोग दौड़े चले आए... सबने मिलकर एक-एक ईंट हटाई... तीन बच्चे दब गए थे दीवार के नीचे। सबसे भीतर मोहना था... बुरी तरह घायल। सिर से खून बह रहा था... हाथों-पैरों पर खरोंचें थीं... शायद हड्डियां भी चटकी थीं। मोहना ने एक नज़र मास्सा'ब को देखा, होंठों में ही बुदबुदाया...'मास्सा'ब'... और उसकी आँखें मुंदने लगीं... वह बेहोश हो चुका था। शेष दोनों बच्चों को हलकी चोटें आई थी... बुरी तरह दब गया था तो मोहना...। छोटे शहर में एम्बुलेंस की सुविधा होती कहाँ है... मास्सा'ब मालकिन बुढ़िया के यहाँ दौड़े थे... कार बाहर लगी थी, मगर बुढ़िया ने दी नहीं... साफ मना कर दिया, खून के दाग लग जाते शायद... मास्सा'ब लौटे, और तब तक भीड़ में से कुछेक मोटर-बाइक वाले युवक मदद को आ गए थे। तीनों बच्चों को तीन बाइक पर एक-एक आदमी सम्हाल कर बैठ गए, मोहना को मास्सा'ब ने अपनी गोद में सम्हाला...। ***** ***** ***** १२ घंटे बीतने को हैं... मोहना को अब तक होश नहीं आया... मास्सा'ब उसके सिरहाने बैठे हैं। अपना खून भी दिया है मास्सा'ब ने मोहना को... डॉक्टर साब कहते हैं, "यदि चोट अंदरूनी हुई तो बड़ी मुश्किल होगी... होश आ जाने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है"। बाकी दो घायल बच्चे ठीक हैं, उनकी चिकित्सा कर दी गयी है। मामला पुलिस तक पहुँच गया है... प्रिंसिपल सिर पकड़ कर बैठे हैं... अब क्या होगा? यदि बच्चे को कुछ हो गया तो? पुलिस, प्रशासन, जनता... सब तिगनी का नाच नाचकर रहेगी... स्कूल बंद करवा देगी, फिर क्या होगा? मास्सा'ब सोचते हैं - यदि होश में आने के बाद मोहना ने पुलिस के सामने उनका नाम लिया तो... ? हो सकता है कि लापरवाही के लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जाए, स्कूल से तो निकाल ही दिया जाएगा, कहीं मुकदमा भी ना हो जाए उन पर.… कितनी बदनामी होगी... ! खैर... बदनामी भी कुबूल है उन्हें... लेकिन यदि मोहना को कुछ हो गया तो... ? क्या जवाब देंगे वे मोहना की माँ को... ? किस तरह सामना करेंगे वे उन आँखों का... ? क्या उन आँखों में वे फिर कभी वह सब देख पाएँगे, जो उन्होंने आते वक़्त गाँव में देखा था ... ? ***** ***** ***** पता नहीं कब आँख लग गई थी उनकी, दोपहर हो चला था... अचानक अपने हाथों में थमा मोहना का हाथ हरकत करता-सा लगा उन्हें... आँखें खुल गयीं... देखा, मोहना एकटक उन्हें ही देख रहा है... वे चिल्ला पड़े... "डॉक्टर साब"... ***** ***** ***** पता नहीं कैसे, ऐन उसी वक़्त पुलिस भी बयान लेने आ गयी थी... शायद मास्सा'ब का, लेकिन मोहना को होश आया देख पुलिस मोहना से भी पूछताछ करने लगी। मास्सा'ब को मोहना से बात करने का भी वक़्त नहीं मिला था - "मेरी वजह से दीवार गिरी, मैं दीवार पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था"... मोहना ने पुलिस को बताया।
मोहना के इस झूठ पर खीझे नहीं थे मास्सा'ब... मास्सा'ब का जी चाहा - कलेजे से लगा लें वे मोहना को... कभी अलग न होने दें... धीरे-से हाथ फेरा मोहना के माथे पर उन्होंने… और मास्सा'ब को लगा - गुनहगार तो थे ही वे मोहना के... अब कर्ज़दार भी हो गए...!!