Saturday, May 5, 2012

जब दिन बुझ जाए...

जब दिन बुझ जाए तो चाँद जला लेना 
छत पर बैठना, चाँदनी में नहा लेना 

उसकी यादों को रखना महफूज़ कुछ यूँ 
क़िताबों के वरक़ों में तस्वीर छुपा लेना 

पिछले पहर रात को जब नींद खुले 
दीये की लौ उठकर कुछ और बढ़ा लेना 

कहते हैं ख़ुदा बाशिंदा है दिल का 
हो सके तो किसी दिल का आसरा लेना 

यूँ तो दुआओं का क्या है मगर 
अबके घर जाओ तो सबकी दुआ लेना 

कुछ यूँ ही बसर होती है रात अपनी 
तकिये पे सर कभी सर पे तकिया लेना 

( महफूज़ = सुरक्षित, safe; वरक़ों = पन्नों, pages; 
बाशिंदा = रहने वाला, habitant; आसरा = सहारा, shelter )