हाथ रखा सीने पर, फिर भी आह न किया
यूँ तो मुझसे भी हँसकर मिली थी ख़ुशी
दो पल से मगर ज्यादा निबाह न किया
सूखी धरती, बंजर सपने, बयाबान दिल
मेरी तरह किसी ने जिंदगी तबाह न किया
मुन्तजिर रहकर एक उम्र काट दी मैंने
किसी ने मगर, इस तरफ निगाह न किया
"ना..." आत्मघात
सरे-शाम आत्मघात के
लिपटी पड़ी थी इरादे से
मुझसे फिर आँख की
मेरी तन्हाई... छत पर
चढ़े आँसू/
इस तन्हाई से चार पल
सख्त नफरत है मुझे ठहरे,
पर, तुम्हें ढूँढा -
और फिर
जब भी बाँहें खोले टप्प-से
आती है- गिर पड़े आँसू...!
मैं "ना"
नहीं कर पाता...!