Monday, September 26, 2011

दर्द से भींगती रहीं आँखें...

दर्द से भींगती रहीं आँखें, परवाह न किया
हाथ रखा सीने पर, फिर भी आह न किया

यूँ तो मुझसे भी हँसकर मिली थी ख़ुशी
दो पल से मगर ज्यादा निबाह न किया

सूखी धरती, बंजर सपने, बयाबान दिल
मेरी तरह किसी ने जिंदगी तबाह न किया

मुन्तजिर रहकर एक उम्र काट दी मैंने
किसी ने मगर, इस तरफ निगाह न किया


Wednesday, September 21, 2011

हासिल

बरसों तलक मैं
सहेजता रहा
आँसू के हर एक क़तरे को
अपनी पलकों के
सीपियों में

जमा करता रहा उस पर
दर्द की परत दर परत
इस उम्मीद में कि इक रोज़
ये मेरे सारे आँसू
बन जायेंगे मोती

मगर आज,
जब अचानक मैंने
अपने दिल के खजाने को टटोला
ग़म के चंद हीरे
मेरे हाथ लग गए...

वो आँसू मेरा सरमाया था,
ये ग़म मेरा हासिल है !!!


Friday, September 16, 2011

दो मुख़्तसर नज़्म...

 
"ना..." आत्मघात




सरे-शाम आत्मघात के
लिपटी पड़ी थी इरादे से
मुझसे फिर आँख की
मेरी तन्हाई... छत पर
चढ़े आँसू/
इस तन्हाई से चार पल
सख्त नफरत है मुझे ठहरे,
पर, तुम्हें ढूँढा -
और फिर
जब भी बाँहें खोले टप्प-से
आती है- गिर पड़े आँसू...!

मैं "ना"
नहीं कर पाता...!


Sunday, September 11, 2011

चाँद नहीं उगेगा कभी


रात जनाज़ा निकला था चाँद का
सितारे आए थे मय्यत में रोने,
आसमाँ ने अपने हाथों
एक सफ़ेद-शफ्फाफ-सा अब्र
ढक दिया था लाश के बदन पर...
बतौर कफ़न

और मैं, खामोश ये दर्द पी रहा था
जब तुमने मेरे हाथों में थमा दी थी कुदाल
मैंने अपने दिल की ज़मीन पर
आहिस्ते-से एक छोटा सा कब्र खोदा
और उसकी लाश कर दी मैंने...
चुपके से दफ़न

अब से मेरी हसरतों के आसमान पर
चाँद नहीं उगेगा कभी...!


Saturday, September 3, 2011

जिस रोज़ तेरे ज़िस्म के...

जिस रोज़ तेरे ज़िस्म के फूल महक जायेंगे
तुम्हारी कसम, हम थोड़ा सा बहक जायेंगे

शोलों को ग़र देती रही यूँ ही तुम हवा
बेशक़ इक रोज़ हम भी दहक जायेंगे

अब तो अक्सर ये हाल रहेगा तुम्हारा
सोचोगी मुझे और आँचल ढलक जायेंगे

छोडो भी शरमाना, पलकों को यूँ झुकाना
ये जो मय है आँखों में, छलक जायेंगे

अब जो छत पे आना, जरा चुपके से आना
राज़ खुल जाएगा, ग़र पाज़ेब खनक जायेंगे

कभी ये ग़ज़ल मेरी तुमसे मिले कहीं तो -
मिल बैठना, बातें करना, रुखसार दमक जायेंगे