कहकशाँ में धुली चाँदनी-सी
सुरमई रात, दिल का आँगन
और तुम, कोई परी-सी
तुम, मैं और ये जज़्बात
चाँद, रात और मयकशी-सी
बिखरी-बिखरी निखरी-निखरी
हर तरफ इक रोशनी-सी
सौ अंजुम यकहा जल उठे
यूँ रुखसार पे लौ लहकी-सी
लम्हों के ज़िस्म पर तेरा लम्स
लिख रही दास्ताँ अनकही-सी