Monday, October 10, 2011

एक ख्व़ाब और वो भी...

एक ख्व़ाब और वो भी
मिली पराई-सी
हर जानिब मिली हमें,
इक तन्हाई-सी

करके ज़ुदा ख़ुद से तेरे
ख़याल को हम
जिस राह निकले, मिली
तेरी परछाईं-सी

दर्द एक दुल्हन हो जैसे,
जब आई इस घर
कुछ ताने दुनिया ने दे दिए,
मुँहदिखाई-सी

चलो ये भरम ही सही हमारा,
मगर यूँ हुआ
ज़िंदगी जब भी मिली हमसे,
मिली शरमाई-सी

ये किस गली आ गए हैं हम
के लोगों यहाँ
फ़कीरे-इश्क़ को घर-घर
मिली रुसवाई-सी


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