Monday, December 15, 2008

तमन्ना ही रही दिल की...

मेरे लिए तुम कभी मेरे पास आते,
तमन्ना ही रही दिल की-
कोई गीत तुम मेरे लिए भी गाते...

जब भी तुम आए
कोई और था साथ तुम्हारे-
तुम्हारी बातों में, तुम्हारी राहों में
तुम उसी के लिए थे हँसते,
उसी के लिए मुस्कराते...

तुम्हारा हर क़दम
उसी के जानिब उठते रहे
तुम मुझे मगर अपना हमसफ़र कहते रहे-
क्योंकि मैं साथ रहा
उसके घर तक आते-जाते...

मैं अपने आँसू
छुपा लेता था तुम्हें देखकर
मगर सच तो ये है कि-
एक उम्र कट गई,
बस यूँ ही रोते-रुलाते...

बस इतनी-सी बात
कह लूँ आज मैं तुमसे
क्यों तुमने कभी सोचा नहीं-
जिन आँखों में आँसू हों
उनमें क्या ख़्वाब नहीं जगमगाते...?


Friday, December 12, 2008

ज़िंदगी ने एक रोज़ मुझे...

ज़िंदगी ने एक रोज़ मुझे तेरा पता दिया
चंद गुलाब खिले दरम्याँ, साँस-साँस महका दिया

क़तरा-क़तरा पिघलता रहा चाँद आँखों में सारी रात
तेरी हँसी ने जाने ये क्या गुल खिला दिया

ख्वाहिशों की मुंडेर पर पिछली शब कोई परिंदा था
इस दर्द से चहका के भरी नींद से जगा दिया

तेरी राह में काँटे सही मगर मेरे हमसफ़र, कह दो-
तूने मुझे अपना सफर, अपनी मंज़िल, अपना रास्ता दिया


Wednesday, December 10, 2008

बिखरती जुल्फों के जब...

बिखरती जुल्फों के जब पहरे हो जाते हैं
क़ायनात के सारे फूल तेरे चेहरे हो जाते हैं

अंगूठे से यूँ ज़मीं को कुरेदा ना करो
ज़ख्म दिल के हरे हो जाते हैं

नीची निगाहों से दिल पे ना करो चोट
जज्बात मेरे और गहरे हो जाते हैं

सुना है- इश्क़ में पड़ते हैं जब दो दिल
सारे लम्हात सुनहरे हो जाते हैं


Monday, December 8, 2008

कोशिशें बेहतर, मुसलसल कर...

कोशिशें बेहतर, मुसलसल कर  
ज़िंदगी मुअम्मा सही, हल कर 

इस दुनिया में तेरे दुश्मन बहुत हैं 
 दिल, जरा सम्हल कर 

ज़िंदगी रेहन न रख अँधेरे के 
गुम हुआ नहीं है शम्स ढल कर 

दुनिया खड़ी है इंतज़ार में तेरे 
दायरे से अपने आ तो निकल कर 

मुनासिब है एक चाँद हो सब के लिए 
क्यों ना ढूँढें उसे चल कर 

बहुत हो गया चलना बच-बच के 
 देखें दुनिया को बदल कर 


Friday, December 5, 2008

लेकर हाथों में वो आईना...

लेकर हाथों में वो आईना पूछते हैं
मुझसे मेरी ज़िंदगी का मायना पूछते हैं

रोशनी अपने हिस्से की उन्हें दे चुका
फिर भी किसे कहते हैं चाहना- पूछते हैं

इस मासूमियत को आखिर क्या कहिए
क्यूँ भूल गया हूँ मैं हँसना, पूछते हैं

जिन लबों ने कभी आने को कहा नहीं
उन्ही लबों से, तुम आए क्यूँ ना- पूछते हैं

यूँ के जैसे मुझे पहचानते ही नहीं
कब से हो तुम मेरे आशना पूछते हैं

उफ्फ़! ये अदा, ये शोखी, ये अना
क्या है तेरी ज़िंदगी मेरे बिना, पूछते हैं


कहने को कह गए कई बात...

कहने को कह गए कई बात ख़ामोशी से
कटते-कटते कट ही गई रात ख़ामोशी से

न शोर-ए-हवा, न आवाज़-ए-बर्क़ कोई
निगाहों में अपनी हर दिन बरसात ख़ामोशी से

शायद तुम्हें ख़बर न हो लेकिन यूँ भी
बयाँ होते हैं कई जज्बात ख़ामोशी से

दिल की दुनिया भी कितनी ख़ामोश दुनिया है
किसी शाम हो गई इक वारदात ख़ामोशी से

माईले-सफर हूँ, बुझा-बुझा तन्हा-तन्हा
पहलू में लिए दर्द की कायनात ख़ामोशी से

मुट्ठी में रेत उठाये चला था जैसे मैं
आहिस्ता-आहिस्ता सरकती गई हयात ख़ामोशी से


Friday, November 28, 2008

लेकिन!

मैं सोचता था-
तुम्हारे होठों के
खुलते-बंद होते
सीपियों में
मुस्कुराहटों के
अथाह मोती हैं
शायद तुम
उनमें से कुछ
मुझे भी दोगे...
शायद मैं
उन्हें लेते-लेते
थक जाऊँगा,
पर वो कभी ख़त्म न होंगे...

लेकिन,
मुझे क्या पता था-
कि एक दिन जब
तुम चले जाओगे
वो... तुम्हारी मुस्कुराहटों के मोती...
मेरी आँखों में
आँसू बनकर रह जाएँगे!

मैं थक गया हूँ
इन्हें पोंछते-पोंछते
पर ये
ख़त्म नहीं होते...

सोचता हूँ-
मैंने ऐसा तो नहीं सोचा था?


वस्ल के दिन याद आए...

वस्ल के दिन याद आए, हिज़्र की रातें याद आईं
तुम याद आए तो न जाने कितनी बातें याद आईं

पहरों-पहर पहलू में जब खामोश धड़कते थे दो दिल
चुपचाप-सी पहले-पहल की वो मुलाकातें याद आईं

बूँद-बूँद रूह को भिंगोने की ख़्वाहिश रखती हों जैसे
तेरे गुनगुनाते लबों से नज़्मों की वो बरसातें याद आईं

थोड़ा-सा दर्द, थोड़ी-सी तड़प और थोड़े-से आँसू
जाते-जाते जो तुम दे गए, आज वो सौगातें याद आईं


Thursday, November 27, 2008

प्यास का समन्दर है के...

प्यास का समन्दर है के समन्दर की प्यास है
एक दिल है मेरा और वो भी उदास है

मुद्दत से एक क़तरा खुशबू आँखों में है
एक दर्द-सा कहीं दिल के आस-पास है

अपने ही लहू से तर कोई गुलाब हो जैसे
तमन्ना के खूँ से तर दिल का लिबास है

बतौर इल्ज़ाम ही सही मगर सच कहते हैं लोग
इक अहसास के सिवा और क्या इस दिल के पास है


Monday, November 24, 2008

अज़ीब दिल है...

अज़ीब दिल है, दर्दे-दिल को ढूँढता है
कोई मक़तूल अपने क़ातिल को ढूँढता है

सरे-शाम से चरागे-चश्मे-नम लिए
एक मुसाफिर अपनी मंजिल को ढूँढता है

कभी अपने खाली हाथ देखता है तो कभी
गुज़श्ता उम्र के हासिल को ढूँढता है

उठकर चला तो आया अपनी रौ में मगर
रह-रहकर तेरी ही महफ़िल को ढूँढता है

दरिया के एक किनारे खड़ा है और
दरिया के दूसरे साहिल को ढूँढता है

इस दश्त में हर दरख्त तन्हा-तन्हा-सा
अबकी बहार में अनादिल को ढूँढता है


Saturday, September 20, 2008

अश्क़ नहीं वो...

अश्क़ नहीं वो ख़्वाब है आँखों में
महका हुआ कोई गुलाब है आँखों में

ज़र्रा-ज़र्रा नूर की बारिश है
एक क़तरा माहताब है आँखों में

प्यार के फलसफे, प्यार की बातें
प्यार की खुली किताब है आँखों में

रूह हो जैसे प्यास की एक शमाँ
प्यासी-प्यासी-सी आब है आँखों में

लम्हा-लम्हा मासूमियत है, खामुशी है
गो लरजाँ एक सैलाब है आँखों में

उठ के झुकना, झुक के फिर उठना
हर एक अदा लाज़वाब है आँखों में


तुम आए...

तुम आए, दिलजोई हुई
मुस्कुरा पड़ी आँख रोई हुई

महक उठीं कलियाँ जज्बात की
शबनमे-अश्क़ से धोई हुई

मचल-मचल गईं आज
हसरतें दिल की सोई हुई

शमए-आरजू थी दिल में
बुझी-बुझी, खोई हुई

सोचते रहे ता-उम्रे-फ़िराक़
खता कब हमसे कोई हुई

रो-रोकर तुम्हारी याद में
अफ़साने हुए, गज़लगोई हुई


वफ़ा मिली ना...

वफ़ा मिली ना प्यार मिला ज़िंदगी में
मिला भी तो क्या मिला ज़िंदगी में

न दोस्त, न हमदम, न हमनवा कोई
करें तो किससे करें गिला ज़िंदगी में

दर्द के फूल, दर्द की कलियाँ
दर्द का ही बाग़ खिला ज़िंदगी में

बहुत-बहुत तो मिला नहीं थोड़ा भी
थोड़ा-थोड़ा ही बहुत मिला ज़िंदगी में


दर्द भरे गीत...

दर्द भरे गीत गुनगुनाता हूँ मैं
मेरी आदत है, दर्द में चैन पाता हूँ मैं

कभी तन्हाई ने गले लगाया था मुझको
अब तन्हाई को गले लगाता हूँ मैं

अजीब हालत है- दिल की ही सुनता हूँ
दिल को ही अपनी बात सुनाता हूँ मैं

सुना था- किसी के रोने पर हँसती है दुनिया
लो अब रोकर दुनिया को हँसाता हूँ मैं


Friday, September 19, 2008

बड़ी वफ़ा से...

बड़ी वफ़ा से निभा रहे थे तुम, थोड़ी-सी बेवफाई कर दी
क्या आलम था तेरे उन्स का, और तुम्हीं ने जगहंसाई कर दी

दश्ते-फ़िराक़ में छोड़ कर तन्हा, तुम न जाने कहाँ गुम हुए
वाह मेरे रहनुमा! क्या खूब तुमने मेरी रहनुमाई कर दी

मुजस्सिम हँसी बनकर आये थे मेरी जिंदगी में कभी, मगर
तुम गए तो इस तरह गए, आँखों को नज़्र रुलाई कर दी

ग़म ही शमाँ, ग़म ही रोशनी, ग़म ही परछाईं मेरी
अपने बदले तुमने ग़म से ही मेरी आशनाई कर दी


जब तेरी नज़रों का...

जब तेरी नज़रों का नूर था, मैं कितना मगरूर था
अब लगता है दो दिन का बस वो तो एक सुरूर था

दरअस्ल एक सपना था, पलकों से फिसल गया
आँख खुली तो पाया- मैं तुमसे बहुत, बहुत दूर था

दर्द की जागीर से जाने कब एक क़तरा निकल गया
अश्कों को सम्हाल रखूँ, इतना भी ना शऊर था

तुम्ही कहो- क्या ख़ाक पूरा होता अरमाँ उसका
एक बौने को जो चाँद छूने का फ़ितूर था !!!


Monday, June 30, 2008

कुछ तुम भी मगरूर थे...

कुछ तुम भी मगरूर थे, कुछ मैं भी मगरूर था
अगरचे ना तुम मजबूर थे, ना मैं मजबूर था

एक जिद के झोंके ने दो कश्तियाँ, मोड़ दीं दो तरफ
वरना दूरियों का ये ग़म किस कमबख्त को मंजूर था

खतामंदी का अहसास दफ़न किये हम अपने सीने में
कहाँ तक बहलायें दिल को, सब वक़्त का कुसूर था

ये तो नहीं कि मेरी नज़रों को धोका हो गया
तुम्हारी जानिब से भी हल्का-सा कोई इशारा ज़रूर था

दिल ही मेरा नादाँ निकला, यकीं कर बैठा
यूँ जमाने में शोख नज़रों का मुकर जाना मशहूर था

एक तुझसे ही क्यों हो शिकायत मुझे ज़माने में
हर किसी के जब लब पर यहाँ जी-हुज़ूर था


बहुत रोयेंगे हम...

बहुत रोयेंगे हम तुम्हें याद करके
देखेंगे हर चेहरे में तेरा चेहरा ईजाद करके

और करेंगे भी क्या तेरे बगैर हम
बैठे रहेंगे मुद्दतों दिल नाशाद करके

वक्ते-बेरहम से किया करेंगे सवाल
क्या मिला उसे यूँ हमें बरबाद करके

जीस्ते-नाशाद को बहलाएँगे तो कैसे
मिलेगा भी क्या किसी से फरियाद करके

चाहा था साथ तुम्हारे मुस्कुराना, मगर
अश्क पाया हमने तुम पर एतमाद करके

तेरी क़ुर्बत के सिवा और किसी शै में
असर कहाँ, कि जाए हमें शाद करके

चले जा रहे हो और ही जहाँ में तुम
ग़मे-फिराक सीने पर हमारे लाद करके

और हमारी जिंदगी में अब बचा ही क्या
बस एक बारे-ग़मे-जिंदगी को बाद करके


Monday, June 23, 2008

रोशन है मेरी रात...

रोशन है मेरी रात कि मेरे पास तुम हो
मुझे चरागों से क्या, कि मेरे पास तुम हो

अब अँधेरे का डर किसे है, चाहे तो
हर चराग़ बुझा दे हवा, कि मेरे पास तुम हो

ग़म नहीं, गो ज़माने से मिला नहीं
और कुछ ग़म के सिवा, कि मेरे पास तुम हो

क्यों शोर मचाती है दुनिया, ले जाए
जो उसने है दिया, कि मेरे पास तुम हो

कल की परवा क्यों करें, अब है यकीं
दर्द को बना लेंगे दवा, कि मेरे पास तुम हो

मुबारक हो उस जहाँ को ये खुदाई, अब यहाँ
कौन खुदा, कैसा खुदा? कि मेरे पास तुम हो


तुम हो मेरे आसपास...

तुम हो,
मेरे आसपास-
हर पल, हर कहीं
बस तुम,
और...
और कुछ नहीं!

साँझ की चौखट पर
जलता हुआ एक दीया-
मेरे इंतज़ार में ही शायद
कहीं तुम हो.

भोर की देहरी पर
नरम-सी धूप का स्पर्श-
जैसे तुम्हारी हथेलियों ने
छुआ हो मुझे,
कुनमुना कर टूट जाती है नींद
और देखता हूँ-
सामने तुम हो.

शायद यह वहम हो मेरा,
पर...
तुम हो,
मेरे आसपास-
हर पल, हर कहीं...!!!


जिसे चाहा था...

जिसे चाहा था, उसका साथ न मिला
मेरी तरफ बढ़े प्यार से, वो हाथ न मिला

मैंने तलाशा तो हसीं बुत कई मिल गए
मेरे दर्द को अपना कहे, वो जज्बात न मिला

हसरतों को हासिल नहीं कुछ अश्कों के सिवा
तमन्ना ढूँढकर हारी, हँसी का सुराग न मिला

दिल का आलम हो कि खिजाँ का मौसम
उड़ते परिंदों को सब्ज कोई शाख न मिला


जब भी दिल उदास होता है...

जब भी दिल उदास होता है, तेरे पास चला आता हूँ मैं
बहाने से छूकर तेरा हाथ, अपना ही दर्द सहलाता हूँ मैं

बस एक तुम होते हो साथ मेरे, तो तन्हाई साथ नहीं होती
यूँ भीड़ में खुद को कुछ ज्यादा ही तन्हा पाता हूँ मैं

तुम्हारे रंजो-ग़म पर कुछ तो आखिर हक हो मेरा
कि अपने दिल को तेरे दर्द का लिबास पहनाता हूँ मैं

दोस्त, अपने अह्सासे-दर्द से मुझे महरूम न कर
ये वही दर्द है जिससे अपना दिल बहलाता हूँ मैं


Sunday, June 1, 2008

जब भी देखोगे मुझे...

जब भी देखोगे मुझे इसी हाल में पाओगे,
आँख में आँसू, लबों1 को हँसता हुआ पाओगे

तुम्हारा तो खैर यकीन2 है मुझे खुद से ज्यादा,
आँसू दिया है जब आज तो कल भी रुलाओगे

मेरा क्या है? एक अदना3-सा आदमी ही तो हूँ
आखिर कब तक मुझे तुम याद रख पाओगे?

मुझे तो अपनी ख़ाक4 पर भी कोई हक़ नहीं,
हर उम्मीद है झूठी, क्यों कोई उम्मीद दिलाओगे?

1. होंठों 2. विश्वास 3. तुच्छ 4. राख, धूल


बुझी-बुझी सी जिंदगी

कई बार यूँ भी होता है कि दिल में
आरजू1 की लौ कोई जगमगाती है,
दर्द से बोझिल पलकों से मगर
अश्क़2 गिरते हैं, शमाँ बुझ जाती है

बुझी-बुझी सी जिंदगी,
सुलग कर रह जाती है...!

दिल की रविश3 पर बस खार4 ही खार
तमन्ना दूर खड़ी सोच में पड़ जाती है,
क़दम वापस खींच लेती हैं खुशियाँ
उझक कर हसरतें5 भी लौट जाती है

झिझकी हुई सी जिंदगी,
ठिठक कर रह जाती है...!

दर्द की गिरफ्त में तन्हाईयों6 से घिरी
जिंदगी खुद को बेबस-सी पाती है,
बन्द दरीचे7 पर दस्तक देती है मुहब्बत
टीस दिल के टुकड़े कर जाती है

टूटे काँच सी जिंदगी,
दरक कर रह जाती है...!

बुझी-बुझी सी जिंदगी,
सुलग कर रह जाती है...!

1. इच्छा, आकांक्षा 2. आँसू 3. पगडंडी 4. काँटे 5. इच्छा, आकांक्षा 6. अकेलापन 7. खिड़की, झरोखा


आ, कि जरा देर रो लें हम

वफ़ा की वफात1 पर
इस हजीं2 वारदात3 पर
आ, कि जरा देर रो लें हम

कल को आँखें तरस ना जाएँ
बूँदें शायद फ़िर बरस ना पायें
अश्कों की बारिश में दिल को
क्यों न आज भिंगों लें हम
आ, कि जरा देर रो लें हम

स्याही4 चेहरे पर दर्द की
कई दिन से है बिखरी हुई
चलो जतन कोई करें मिलकर
ये रंग चेहरे का धो लें हम
आ, कि जरा देर रो लें हम

बेकसी5 है, तरावट6 नहीं
किसी के आने की आहट नहीं
इस उदासी को, इस खामोशी को
रूह7 की पहनाई8 में समो लें हम
आ, कि जरा देर रो लें हम


रूह भी, जिस्म9 भी
थक गया साँसों का तिलिस्म10 भी
मसरूफियों11 को कर दें दरकिनार12
मिलकर गले चार पल सो लें हम
आ, कि जरा देर रो लें हम

सारे अरमाँ ख़ाक13 हो चले
हम फिर से खाली हाथ हो चले
चंद कलियाँ निशात14 की चुराएँ
ख्वाब थोड़े-से फिर संजो लें हम
आ, कि जरा देर रो लें हम

कुछ ज़ख्म तेरे भी
कुछ ज़ख्म हैं पास मेरे भी
ज़ख्म दोनों के दूर-दूर क्यों रहें
दर्द है एक जैसा, साथ पिरो लें हम
आ, कि जरा देर रो लें हम

इस गमे-हयात15 पर
दिल और दर्द के ताल्लुकात16 पर
आ, कि जरा देर रो लें हम

1. मौत, मृत्यु 2. शोकपूर्ण 3. दुर्घटना 4. कालिमा 5. बेचैनी, विकलता 6. ताजगी 7. आत्मा 8. विस्त्रितता, विस्तार 9. शरीर 10. इन्द्रजाल, जादू 11. व्यस्तताओं 12. अलग, एक तरफ 13. राख 14. सुख, आनंद 15. जीवन के दुःख 16. संबंध


रंग गया, नूर गया...

रंग गया, नूर1 गया, जिंदगी की रानाईयाँ2 गईं
आँखों से दूर कहीं ख़्वाबों की परछाईयाँ गईं

उड़ती फिरती थीं बागे-हयात3 में गुनगुनाती हुई
कितनी शोख4 थीं वो मशर्रत5 की तितलियाँ, गईं!

पहले से ही क्या कम थे जो मेरी राहों में
बिछा के काँटे कुछ और, तुम्हारी नजदीकियाँ6 गईं

मैं तो अपने दिल को कुछ समझा भी ना सका
शायद तुम्हें पता हो, पूछूँ, कहाँ मेरी खुशियाँ गईं?

1. रोशनी, प्रकाश 2. सुन्दरता, श्रृंगार 3. जीवन-रूपी बाग़ 4. नटखट, चंचल 5. आनंद, प्रसन्नता 6. सामीप्य


तुम्हें देखा तो...

तुम्हें देखा तो भरी आँख भी मुस्करा गई
मेरे होंठों की हँसी हर ज़ख्म1 छुपा गई

मुद्दत2 बाद गुज़रे हो इस गली से तन्हा3
सोचता हूँ, बात क्या तुम्हें याद इधर की दिला गई?

एक मैं ही तो नहीं था तुम्हारे अपनों में कभी
बड़ी लम्बी क़तार4 थी, क्या ख़त्म होने को आ गई?

ख्वाहिश5 तो बहुत थी साथ तुम्हारे रहने की
पर क्या करें? आड़े तुम्हारे ही मजबूरियाँ आ गई

तुम से दूर होकर सिवा तड़प के कुछ हासिल तो नहीं
पर ये बोझ भी चुपके से हर साँस उठा गई

खैर यही सही, तुम खुश तो हो अपनों में
एक मेरी कमी क्या लेके तुम्हारा गई?

1. घाव 2. बहुत दिन, अरसा 3. अकेला 4. पंक्ति 5. इच्छा, चाह


Wednesday, May 21, 2008

विभ्रम

तुम्हारे बदन के
उजास में,
चाँदनी
घुल गई है शायद,
ये चाँदनी...
तुमसे है या
चाँद से,
पता नहीं चलता...!!!


अपना निशाँ नहीं रहेगा...

ये धरती वही रहेगी, आसमाँ वही रहेगा
मगर ऐ दोस्त, अपना निशाँ1 नहीं रहेगा


कुछ दूर तक चलकर गुम हो जायेंगे नक्शे-पा2
जिंदगी का सिलसिला यूँ ही रवाँ3 नहीं रहेगा


अधूरे अरमाँ4 कुछ, कुछ राजे-दिल5 जाहिरो-निहाँ6
वक्ते-रुखसत7 साथ कुछ और सामाँ नहीं रहेगा


रोशन राहों पर मचलकर उठेंगे शोख8 क़दम कई
उनकी मंजिल मगर अपना आशियाँ9 नहीं रहेगा


पुकार लिया करेंगी हमें खामोशियाँ कुछ लबों की
हर दिल में तो हमारी याद का कारवाँ10 नहीं रहेगा



1. चिह्न 2. पदचिह्न, पाँवों के निशान 3. जारी, चलता हुआ 4. इच्छा, चाह 5. दिल के रहस्य 6. प्रकट और छुपा हुआ 7. प्रस्थान के समय 8. चँचल, चपल 9. घर 10. समूह, काफ़िला


स्मृति के पाश में

बिंध स्मृति के पाश में,
लो फिर-
उड़ चला ये मन,
दूर कहीं-
आकाश में;
बिंध स्मृति के पाश में...


रात कसमसाई,
भींगी-रसमसाई,
चाँदनी में
धुली-नहाई,
किसी की आस में;
बिंध स्मृति के पाश में...


फिर कोई
गीत गूँजा,
सोते से जागा,
मन पीछे भागा;
भाग न सका,
रह गया फँसकर-
उसके मृदु हास में;
बिंध स्मृति के पाश में...


उसकी बातें-
रसभरी-सी,
वो आँखें-
कुछ डरी-सी;
याद आईं तो-
खिल गईं कलियाँ,
यादों के अमलताश में;
बिंध स्मृति के पाश में...


अधरों पर रस-
अमृत-घट का,
बावरा-सा मन-
बहुत ये भटका
न जाने क्यों-
उसके साँसों की
भीनी-सी मदिर सुवास में;
बिंध स्मृति के पाश में...


वो आँखें

वो आँखें-
सपनीली सी,
जिनमें
रक्स1 करती थीं
ख़्वाबों की कुछ
परछाईयाँ-
नीली सी.
वो आँखें-
कुछ गीली-सी,
कुछ सपनीली-सी.


वो आँखें-
कि पंछी ने उड़ने को
अभी-अभी खोली हों जैसे-
नर्म-सी पाँखें;
वो आँखें-
जिनमें दूर तक उतरकर
जी करता था-
झाँकें;
वो आँखें...


वो आँखें-
जो मासूम-सी हँसी
बिखराती थीं,
किसी की राह में
बिछ जाने का
ख़्वाब सजाती थीं;
हँसती थीं- मुस्कराती थीं,
सजती-संवरती और इठलाती थीं,
वो आँखें-
जो नूर2 छलकाती थीं;
जाने किन अंधेरों में
खो गईं-
वो आँखें,
दूर सबसे
हो गईं-
वो आँखें.


अभी उम्र ही क्या थी
उन आँखों की,
अलविदा कह गईं;
जाने कैसी थीं-
वो आँखें,
जो हर दर्द-
चुपचाप सह गईं.


उन आँखों के
हर ख़्वाब-
अधूरे रह गए,
वक़्त की दरिया3 में
न जाने-
किधर बह गए.


मासूम,
कँवल4 की कली-
वो आँखें;
क्यों रह गईं
अधखिली-
वो आँखें?


1. नृत्य 2. रोशनी, प्रकाश 3. नदी 4. कमल


Wednesday, May 7, 2008

सहरा में ज्यों चहक उठे...

सहरा1 में ज्यों चहक उठे अन्दलीब2 कोई
यूँ आ रहा है रूह के क़रीब कोई


इस तल्ख़3 ज़माने में तकल्लुम4 की वो खुनकी
नक्श5 कर गया एहसास दिल पे अजीब कोई


वो सुकूते-निगाह6, वो खुलुसे-तबस्सुम7, वो कशिश
मैंने रख ली दिल के बुतखाने8 में मूरत मजीब9 कोई


तन्हा10 थी हयात11, कोई हमदम, कोई आशना12 न था
मिले जो वो तो लगा अपना भी है हबीब13 कोई


उन लरजते हाथों की हरारत14 से हासिल रूह को करार15
इक लम्से-यार16 के मुक़ाबिल17 क्या होगा तबीब18 कोई


दर्द के क़फ़स19 में महबूस20 थी मुज़महिल21 रूह
मिल गयी साँस खुली हवा में लेने की तरकीब कोई


वो नकहते-गेसू22, बू-ए-पैरहन23, वो महक जिस्म की
अनफ़ास24 की सेज पर देता हूँ इन्हें तरतीब25 कोई


उन मुस्कुराती आँखों में निहाँ26 जिन्दगी की सुकूनो-खुशी27
एक आवारा-ए-मंजिल28 को जैसे मिल गयी तरगीब29 कोई


1. रेगिस्तान, मरुभूमि 2. बुलबुल 3. कड़वा, कटु 4. बात करने की शैली 5. अंकित, चित्रित 6. आँखों की खामोशी 7. मुस्कान की पवित्रता 8. मंदिर 9. पवित्र 10. अकेला, एकाकी 11. जीवन 12. परिचित, मित्र 13. दोस्त, मित्र 14. गर्मी 15. चैन, तसल्ली 16. मित्र का स्पर्श 17. समान, तुल्य 18. चिकित्सक 19. पिंजरा 20. बंद, क़ैद 21. शिथिल, दुर्बल 22. बालों की खुशबू 23. पहनावे/पोशाक की खुशबू 24. साँसों 25. क्रम 26. छिपा हुआ 27. शांति व आनंद 28. जिसकी कोई मंजिल ना हो 29. प्रेरणा, उत्तेजना


मिले नहीं हो तुम तो...

मिले नहीं हो तुम तो तड़प तहरीर1 बन जाती है
वजा-ए-दिले-गमगीं2 भी रोशनी की लकीर बन जाती है


शामे-ग़मे-हिज्राँ3 तुमको ही ढूँढती हैं निगाहें4
और एक वो वक़्त कि हर शै5 तेरी ही तस्वीर बन जाती है


उठती है जो निदा6 रूह7 से तड़प कर तेरे लिए
फज़ा8 में खोकर तयूर9 की वो सफीर10 बन जाती है


तेरे दर11 के सिम्त12 मायल13 हो भी जाता हूँ तो
तेरी वो सुकूते-जुबाँ14 मेरे क़दमों की जंजीर बन जाती है


गर नज़र आ जाओ तुम कभी रहगुज़र15 में
उठती है जो तेरी तरफ, वो हर इक निगाह शरीर16 बन जाती है


ये गुंचा17, ये शाखे-गुल18, ये मौजे-दरिया19, ये चाँदनी
तुझे देखकर देखूँ जिसे, वो हर इक शै बेनज़ीर20 बन जाती है

देखूँ तुझे तो भी तड़पता हूँ, न देखूँ तुझे तो भी
तिशनगी21 ये दिल की कैसी अनबूझ पीर22 बन जाती है

खनकती है हर वक़्त तेरे ही ख़यालों की बेडियाँ
हर आहो-फुगाँ23 मेरी, एक आहे-असीर24 बन जाती है


1. लेखन, लिखी हुई बात 2. उदास दिल का दर्द 3. जुदाई के ग़म की शाम 4. आँखें 5. वस्तु, चीज़ 6. पुकार 7. आत्मा 8. वातावरण 9. पक्षी-समूह 10. कलरव 11. द्वार, दरवाजा 12. ओर, तरफ 13. प्रवृत्त, उन्मुख 14. जुबाँ पर छाई खामोशी 15. रास्ता 16. नटखट, चंचल 17. कली 18. फूलों की शाख 19. नदी की लहरें 20. बेजोड़, अनुपम 21. प्यास 22. दर्द 23. आह और चीख 24. बंदी/क़ैदी की आह


Tuesday, May 6, 2008

तड़प

चुभ सकते हैं
काँटे भी दामन में मगर
काँटों की
परवाह किसे है?

एक फूल जो
आ गया है नज़र हमें
तड़पते हैं
दिन-रात उसी के लिए...!


इन दिनों

दूर कहीं वादियों में
फूल खिलते हैं
महक आती है
मेरी साँसों में
और पागल-सा
हो जाता हूँ मैं
ये क्या हालत है मेरी
इन दिनों?


दिल के वीरानों में
गूँजती है सदा1
खनकती है
किसी की हँसी
और घायल-सा
हो जाता हूँ मैं
ये क्या हालत है मेरी
इन दिनों?


1. आवाज़, शब्द, प्रतिध्वनि


शबनम

अश्कों1 से तर था बिस्तर,
देखा- आँखें पुरनम2 थी.
रात भर रोते रहे थे शायद,
हाँ सचमुच, वो शब3 नम थी.


बिस्तर की सिलवटों ने बताया,
करवटों में हुई रात ख़त्म थी.
अश्कों में झलकी जो एक तस्वीर,
ख़याल आया- वो 'शबनम4' थी.


1. आँसुओं 2. भिंगा हुआ 3. रात 4. ओस


मिलन

धरती पर गिरी थीं
शबनम की बूँदें
उस रात को,
सुबह देखा-
फूल खिले थे.


हृदय पर उतरी थी
तुम्हारी ही परछाईं,
उस दिन जब
पहली बार-
हम मिले थे.


मन की आँखों से...

तुम्हें देखा है मैंने कई बार,
शाम को, तुलसी के चबूतरे पर
दीये जलाते हुए,
पूजा की थाल सजा
शंख बजाते हुए,
और न जाने कितनी बार,
अपने बगीचे में
एक फूल-सा लहराते हुए.
हर शाम एक नयी अदा से,
देखा है तुम्हें मुस्काते हुए.


न जाने किसे देखकर,
तुम्हारे होंठों पर
खिल जाती है हँसी,
तेरे चेहरे को चूमकर
मचलती है लट शबनमी
और थम जाते हैं पाँव राहगीर के,
तुम्हें देखकर गाते हुए.


जाने क्या बात है कि
चलती हो जब तुम राहों में,
एक सुरूर1-सा छा जाता है
हर किसी की निगाहों में
और मजा आता है तुम्हें भी शायद
हर किसी को तड़पाते हुए.


तुम्हारे होंठों की जुम्बिश से,
अपने नाम का
हर किसी को गुमाँ होता है,
पर जलती है जो आग मेरे सीने में,
जरा भी नहीं धुआँ होता है.



तुमने देखा होगा नहीं, मुझे कभी
अपनी गलियों के फेरे लगाते हुए,
मुझे देखकर भी कभी,
तुमने महसूस की होगी नहीं, कशिश3 कोई
क्योंकि मेरा चेहरा, तुमसा नहीं
और झिझकता हूँ मैं,
तुम्हें अपनी मंशा4 बताते हुए.
मन की आँखों से,
क्या तुम कभी देख पाओगी,
मुझे प्यार जताते हुए???


1. नशा 2. कम्पन 3. आकर्षण 4. कामना, अभिप्राय