Sunday, December 11, 2011

रात - २ बिम्ब


सारी रात,
चाँद जलाया मैंने...

सितारे,
शरारों की मानिंद -
बादलों की राख में सुलगते रहे!

सुबह हुई तो रात,
मेरी आँखों की दो हाँडी में
चंद शबनमी क़तरे छोड़ गई...

सारी रात,
अपना दर्द पकाया मैंने...!


रात -
एक अंधी बुढ़िया भिखारन
चाँद का कटोरा लिए बैठी थी...

जाने किस कमबख्त ने
गरीब दुखियारन के कटोरे में
ठेस लगा दी -
सारे सिक्के सितारों के
बिखर गए जहाँ-तहाँ

आज तलक,
वो अभागन -
अपना खोया सरमाया ढूँढ रही है...!