Friday, November 28, 2008

लेकिन!

मैं सोचता था-
तुम्हारे होठों के
खुलते-बंद होते
सीपियों में
मुस्कुराहटों के
अथाह मोती हैं
शायद तुम
उनमें से कुछ
मुझे भी दोगे...
शायद मैं
उन्हें लेते-लेते
थक जाऊँगा,
पर वो कभी ख़त्म न होंगे...

लेकिन,
मुझे क्या पता था-
कि एक दिन जब
तुम चले जाओगे
वो... तुम्हारी मुस्कुराहटों के मोती...
मेरी आँखों में
आँसू बनकर रह जाएँगे!

मैं थक गया हूँ
इन्हें पोंछते-पोंछते
पर ये
ख़त्म नहीं होते...

सोचता हूँ-
मैंने ऐसा तो नहीं सोचा था?


वस्ल के दिन याद आए...

वस्ल के दिन याद आए, हिज़्र की रातें याद आईं
तुम याद आए तो न जाने कितनी बातें याद आईं

पहरों-पहर पहलू में जब खामोश धड़कते थे दो दिल
चुपचाप-सी पहले-पहल की वो मुलाकातें याद आईं

बूँद-बूँद रूह को भिंगोने की ख़्वाहिश रखती हों जैसे
तेरे गुनगुनाते लबों से नज़्मों की वो बरसातें याद आईं

थोड़ा-सा दर्द, थोड़ी-सी तड़प और थोड़े-से आँसू
जाते-जाते जो तुम दे गए, आज वो सौगातें याद आईं


Thursday, November 27, 2008

प्यास का समन्दर है के...

प्यास का समन्दर है के समन्दर की प्यास है
एक दिल है मेरा और वो भी उदास है

मुद्दत से एक क़तरा खुशबू आँखों में है
एक दर्द-सा कहीं दिल के आस-पास है

अपने ही लहू से तर कोई गुलाब हो जैसे
तमन्ना के खूँ से तर दिल का लिबास है

बतौर इल्ज़ाम ही सही मगर सच कहते हैं लोग
इक अहसास के सिवा और क्या इस दिल के पास है


Monday, November 24, 2008

अज़ीब दिल है...

अज़ीब दिल है, दर्दे-दिल को ढूँढता है
कोई मक़तूल अपने क़ातिल को ढूँढता है

सरे-शाम से चरागे-चश्मे-नम लिए
एक मुसाफिर अपनी मंजिल को ढूँढता है

कभी अपने खाली हाथ देखता है तो कभी
गुज़श्ता उम्र के हासिल को ढूँढता है

उठकर चला तो आया अपनी रौ में मगर
रह-रहकर तेरी ही महफ़िल को ढूँढता है

दरिया के एक किनारे खड़ा है और
दरिया के दूसरे साहिल को ढूँढता है

इस दश्त में हर दरख्त तन्हा-तन्हा-सा
अबकी बहार में अनादिल को ढूँढता है