Wednesday, May 21, 2008

विभ्रम

तुम्हारे बदन के
उजास में,
चाँदनी
घुल गई है शायद,
ये चाँदनी...
तुमसे है या
चाँद से,
पता नहीं चलता...!!!


अपना निशाँ नहीं रहेगा...

ये धरती वही रहेगी, आसमाँ वही रहेगा
मगर ऐ दोस्त, अपना निशाँ1 नहीं रहेगा


कुछ दूर तक चलकर गुम हो जायेंगे नक्शे-पा2
जिंदगी का सिलसिला यूँ ही रवाँ3 नहीं रहेगा


अधूरे अरमाँ4 कुछ, कुछ राजे-दिल5 जाहिरो-निहाँ6
वक्ते-रुखसत7 साथ कुछ और सामाँ नहीं रहेगा


रोशन राहों पर मचलकर उठेंगे शोख8 क़दम कई
उनकी मंजिल मगर अपना आशियाँ9 नहीं रहेगा


पुकार लिया करेंगी हमें खामोशियाँ कुछ लबों की
हर दिल में तो हमारी याद का कारवाँ10 नहीं रहेगा



1. चिह्न 2. पदचिह्न, पाँवों के निशान 3. जारी, चलता हुआ 4. इच्छा, चाह 5. दिल के रहस्य 6. प्रकट और छुपा हुआ 7. प्रस्थान के समय 8. चँचल, चपल 9. घर 10. समूह, काफ़िला


स्मृति के पाश में

बिंध स्मृति के पाश में,
लो फिर-
उड़ चला ये मन,
दूर कहीं-
आकाश में;
बिंध स्मृति के पाश में...


रात कसमसाई,
भींगी-रसमसाई,
चाँदनी में
धुली-नहाई,
किसी की आस में;
बिंध स्मृति के पाश में...


फिर कोई
गीत गूँजा,
सोते से जागा,
मन पीछे भागा;
भाग न सका,
रह गया फँसकर-
उसके मृदु हास में;
बिंध स्मृति के पाश में...


उसकी बातें-
रसभरी-सी,
वो आँखें-
कुछ डरी-सी;
याद आईं तो-
खिल गईं कलियाँ,
यादों के अमलताश में;
बिंध स्मृति के पाश में...


अधरों पर रस-
अमृत-घट का,
बावरा-सा मन-
बहुत ये भटका
न जाने क्यों-
उसके साँसों की
भीनी-सी मदिर सुवास में;
बिंध स्मृति के पाश में...


वो आँखें

वो आँखें-
सपनीली सी,
जिनमें
रक्स1 करती थीं
ख़्वाबों की कुछ
परछाईयाँ-
नीली सी.
वो आँखें-
कुछ गीली-सी,
कुछ सपनीली-सी.


वो आँखें-
कि पंछी ने उड़ने को
अभी-अभी खोली हों जैसे-
नर्म-सी पाँखें;
वो आँखें-
जिनमें दूर तक उतरकर
जी करता था-
झाँकें;
वो आँखें...


वो आँखें-
जो मासूम-सी हँसी
बिखराती थीं,
किसी की राह में
बिछ जाने का
ख़्वाब सजाती थीं;
हँसती थीं- मुस्कराती थीं,
सजती-संवरती और इठलाती थीं,
वो आँखें-
जो नूर2 छलकाती थीं;
जाने किन अंधेरों में
खो गईं-
वो आँखें,
दूर सबसे
हो गईं-
वो आँखें.


अभी उम्र ही क्या थी
उन आँखों की,
अलविदा कह गईं;
जाने कैसी थीं-
वो आँखें,
जो हर दर्द-
चुपचाप सह गईं.


उन आँखों के
हर ख़्वाब-
अधूरे रह गए,
वक़्त की दरिया3 में
न जाने-
किधर बह गए.


मासूम,
कँवल4 की कली-
वो आँखें;
क्यों रह गईं
अधखिली-
वो आँखें?


1. नृत्य 2. रोशनी, प्रकाश 3. नदी 4. कमल


Wednesday, May 7, 2008

सहरा में ज्यों चहक उठे...

सहरा1 में ज्यों चहक उठे अन्दलीब2 कोई
यूँ आ रहा है रूह के क़रीब कोई


इस तल्ख़3 ज़माने में तकल्लुम4 की वो खुनकी
नक्श5 कर गया एहसास दिल पे अजीब कोई


वो सुकूते-निगाह6, वो खुलुसे-तबस्सुम7, वो कशिश
मैंने रख ली दिल के बुतखाने8 में मूरत मजीब9 कोई


तन्हा10 थी हयात11, कोई हमदम, कोई आशना12 न था
मिले जो वो तो लगा अपना भी है हबीब13 कोई


उन लरजते हाथों की हरारत14 से हासिल रूह को करार15
इक लम्से-यार16 के मुक़ाबिल17 क्या होगा तबीब18 कोई


दर्द के क़फ़स19 में महबूस20 थी मुज़महिल21 रूह
मिल गयी साँस खुली हवा में लेने की तरकीब कोई


वो नकहते-गेसू22, बू-ए-पैरहन23, वो महक जिस्म की
अनफ़ास24 की सेज पर देता हूँ इन्हें तरतीब25 कोई


उन मुस्कुराती आँखों में निहाँ26 जिन्दगी की सुकूनो-खुशी27
एक आवारा-ए-मंजिल28 को जैसे मिल गयी तरगीब29 कोई


1. रेगिस्तान, मरुभूमि 2. बुलबुल 3. कड़वा, कटु 4. बात करने की शैली 5. अंकित, चित्रित 6. आँखों की खामोशी 7. मुस्कान की पवित्रता 8. मंदिर 9. पवित्र 10. अकेला, एकाकी 11. जीवन 12. परिचित, मित्र 13. दोस्त, मित्र 14. गर्मी 15. चैन, तसल्ली 16. मित्र का स्पर्श 17. समान, तुल्य 18. चिकित्सक 19. पिंजरा 20. बंद, क़ैद 21. शिथिल, दुर्बल 22. बालों की खुशबू 23. पहनावे/पोशाक की खुशबू 24. साँसों 25. क्रम 26. छिपा हुआ 27. शांति व आनंद 28. जिसकी कोई मंजिल ना हो 29. प्रेरणा, उत्तेजना


मिले नहीं हो तुम तो...

मिले नहीं हो तुम तो तड़प तहरीर1 बन जाती है
वजा-ए-दिले-गमगीं2 भी रोशनी की लकीर बन जाती है


शामे-ग़मे-हिज्राँ3 तुमको ही ढूँढती हैं निगाहें4
और एक वो वक़्त कि हर शै5 तेरी ही तस्वीर बन जाती है


उठती है जो निदा6 रूह7 से तड़प कर तेरे लिए
फज़ा8 में खोकर तयूर9 की वो सफीर10 बन जाती है


तेरे दर11 के सिम्त12 मायल13 हो भी जाता हूँ तो
तेरी वो सुकूते-जुबाँ14 मेरे क़दमों की जंजीर बन जाती है


गर नज़र आ जाओ तुम कभी रहगुज़र15 में
उठती है जो तेरी तरफ, वो हर इक निगाह शरीर16 बन जाती है


ये गुंचा17, ये शाखे-गुल18, ये मौजे-दरिया19, ये चाँदनी
तुझे देखकर देखूँ जिसे, वो हर इक शै बेनज़ीर20 बन जाती है

देखूँ तुझे तो भी तड़पता हूँ, न देखूँ तुझे तो भी
तिशनगी21 ये दिल की कैसी अनबूझ पीर22 बन जाती है

खनकती है हर वक़्त तेरे ही ख़यालों की बेडियाँ
हर आहो-फुगाँ23 मेरी, एक आहे-असीर24 बन जाती है


1. लेखन, लिखी हुई बात 2. उदास दिल का दर्द 3. जुदाई के ग़म की शाम 4. आँखें 5. वस्तु, चीज़ 6. पुकार 7. आत्मा 8. वातावरण 9. पक्षी-समूह 10. कलरव 11. द्वार, दरवाजा 12. ओर, तरफ 13. प्रवृत्त, उन्मुख 14. जुबाँ पर छाई खामोशी 15. रास्ता 16. नटखट, चंचल 17. कली 18. फूलों की शाख 19. नदी की लहरें 20. बेजोड़, अनुपम 21. प्यास 22. दर्द 23. आह और चीख 24. बंदी/क़ैदी की आह


Tuesday, May 6, 2008

तड़प

चुभ सकते हैं
काँटे भी दामन में मगर
काँटों की
परवाह किसे है?

एक फूल जो
आ गया है नज़र हमें
तड़पते हैं
दिन-रात उसी के लिए...!


इन दिनों

दूर कहीं वादियों में
फूल खिलते हैं
महक आती है
मेरी साँसों में
और पागल-सा
हो जाता हूँ मैं
ये क्या हालत है मेरी
इन दिनों?


दिल के वीरानों में
गूँजती है सदा1
खनकती है
किसी की हँसी
और घायल-सा
हो जाता हूँ मैं
ये क्या हालत है मेरी
इन दिनों?


1. आवाज़, शब्द, प्रतिध्वनि


शबनम

अश्कों1 से तर था बिस्तर,
देखा- आँखें पुरनम2 थी.
रात भर रोते रहे थे शायद,
हाँ सचमुच, वो शब3 नम थी.


बिस्तर की सिलवटों ने बताया,
करवटों में हुई रात ख़त्म थी.
अश्कों में झलकी जो एक तस्वीर,
ख़याल आया- वो 'शबनम4' थी.


1. आँसुओं 2. भिंगा हुआ 3. रात 4. ओस


मिलन

धरती पर गिरी थीं
शबनम की बूँदें
उस रात को,
सुबह देखा-
फूल खिले थे.


हृदय पर उतरी थी
तुम्हारी ही परछाईं,
उस दिन जब
पहली बार-
हम मिले थे.


मन की आँखों से...

तुम्हें देखा है मैंने कई बार,
शाम को, तुलसी के चबूतरे पर
दीये जलाते हुए,
पूजा की थाल सजा
शंख बजाते हुए,
और न जाने कितनी बार,
अपने बगीचे में
एक फूल-सा लहराते हुए.
हर शाम एक नयी अदा से,
देखा है तुम्हें मुस्काते हुए.


न जाने किसे देखकर,
तुम्हारे होंठों पर
खिल जाती है हँसी,
तेरे चेहरे को चूमकर
मचलती है लट शबनमी
और थम जाते हैं पाँव राहगीर के,
तुम्हें देखकर गाते हुए.


जाने क्या बात है कि
चलती हो जब तुम राहों में,
एक सुरूर1-सा छा जाता है
हर किसी की निगाहों में
और मजा आता है तुम्हें भी शायद
हर किसी को तड़पाते हुए.


तुम्हारे होंठों की जुम्बिश से,
अपने नाम का
हर किसी को गुमाँ होता है,
पर जलती है जो आग मेरे सीने में,
जरा भी नहीं धुआँ होता है.



तुमने देखा होगा नहीं, मुझे कभी
अपनी गलियों के फेरे लगाते हुए,
मुझे देखकर भी कभी,
तुमने महसूस की होगी नहीं, कशिश3 कोई
क्योंकि मेरा चेहरा, तुमसा नहीं
और झिझकता हूँ मैं,
तुम्हें अपनी मंशा4 बताते हुए.
मन की आँखों से,
क्या तुम कभी देख पाओगी,
मुझे प्यार जताते हुए???


1. नशा 2. कम्पन 3. आकर्षण 4. कामना, अभिप्राय