सारी रात,
चाँद जलाया मैंने...
सितारे,
शरारों की मानिंद -
बादलों की राख में सुलगते रहे!
सुबह हुई तो रात,
मेरी आँखों की दो हाँडी में
चंद शबनमी क़तरे छोड़ गई...
सारी रात,
अपना दर्द पकाया मैंने...!
२
रात -
एक अंधी बुढ़िया भिखारन
चाँद का कटोरा लिए बैठी थी...
जाने किस कमबख्त ने
गरीब दुखियारन के कटोरे में
ठेस लगा दी -
सारे सिक्के सितारों के
बिखर गए जहाँ-तहाँ
आज तलक,
वो अभागन -
अपना खोया सरमाया ढूँढ रही है...!