ज़िंदगी में कहीं एक तुम्हारी कमी-सी
जिस मोड़ से मुड़ गए थे तुम राह अपनी
निगाहें वहीं कहीं हैं अब तक जमी-सी
संगे-दहलीज़ पर मेरी लौटोगे कभी तुम
यही वहमो-गुमाँ हमें, यही खुशफहमी-सी
कोई अब्र को दे दो पता मेरी आँखों का
के बरसने के बाद ज़रा हैं ये सहमी-सी
(संगे-दहलीज़ = चौखट, अब्र = बादल)