Saturday, February 11, 2012

ज़िंदगी के नाम...

चाँद की अंगीठी
सितारों के शरारे
बुझती शब है... आ,
कुछ उपले
(साँसों के)
और जला ले...

ये फ़कीर की रात है
कट ही जाएगी
सिमटते-सिकुड़ते-ठिठुरते
(जमाधन)
फटी कम्बल के सहारे...!!!


(अंगीठी = चूल्हा, शरारे = चिंगारियां, शब = रात, उपले = गाय के
गोबर से बना इंधन, जो गरीबों के चूल्हे में जलता है)


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