Friday, May 15, 2009

दर्द के मुकम्मल तराने पे...

दर्द के मुकम्मल तराने पे ना गिरे
आँसू उनके मेरे अफ़साने पे ना गिरे

सजदे में ज़माना है मगर, मेरी जिद-
कि सर मेरा उनके बुतखाने पे न गिरे

जिक्र उनकी बुलंदी के होते हैं अक्सर
शख्स, जो लाख आजमाने पे न गिरे

कमी उनकी ठोकर में नहीं थी मगर
हम थे, जो लड़खडाने पे न गिरे

लम्हा वो भी बारहा आया जिंदगी में
अश्क जब लाख आजमाने पे ना गिरे

यूँ तो बहुत गिरे मेरे आँसू
मगर किसी के शाने पे ना गिरे

ये स्याह मंजर, ये सब धुँआ-धुँआ
कहर आज कहीं जमाने पे न गिरे

ऐ अब्र! बस इतना खयाल रखना
बर्क़ कहीं किसी दीवाने पे ना गिरे


7 comments:

शारदा अरोरा said...

वाह कह कर मुहँ खुला का खुला रह गया , कैसे तारीफ़ करुँ , कमाल लिखते हैं आप तो |

Science Bloggers Association said...

बहुत खूब लिखा है आपने।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

रंजना said...

वाह !!!!! बहुत ही खूबसूरत और संजीदा ग़ज़ल...जिसके हर शेर खूबसूरत और मुक्कम्मल हैं...

दिगम्बर नासवा said...

जिक्र उनकी बुलंदी के होते हैं अक्सर
शख्स, जो लाख आजमाने पे न गिरे
वाह............सही कहा, विद्रोही तेवर हैं मजा आ गया

कमी उनकी ठोकर में नहीं थी मगर
हम थे, जो लड़खडाने पे न गिरे
कुर्बान आपकी इस बात पर............

यूँ तो बहुत गिरे मेरे आँसू
मगर किसी के शाने पे ना गिरे
ये बात लाजवाब लिखी है...........वो आंसू ही क्या जो किसी का कंधा तलाशें

श्रद्धा जैन said...

bahut sunder

कमी उनकी ठोकर में नहीं थी मगर
हम थे, जो लड़खडाने पे न गिरे

smilekapoor said...

Mitra kya lajawab panktiyan likhi hain...
"जिक्र उनकी बुलंदी के होते हैं अक्सर
शख्स, जो लाख आजमाने पे न गिरे"

राजेन्द्र अवस्थी said...

गज़ब.....वाह...