Friday, December 5, 2008

कहने को कह गए कई बात...

कहने को कह गए कई बात ख़ामोशी से
कटते-कटते कट ही गई रात ख़ामोशी से

न शोर-ए-हवा, न आवाज़-ए-बर्क़ कोई
निगाहों में अपनी हर दिन बरसात ख़ामोशी से

शायद तुम्हें ख़बर न हो लेकिन यूँ भी
बयाँ होते हैं कई जज्बात ख़ामोशी से

दिल की दुनिया भी कितनी ख़ामोश दुनिया है
किसी शाम हो गई इक वारदात ख़ामोशी से

माईले-सफर हूँ, बुझा-बुझा तन्हा-तन्हा
पहलू में लिए दर्द की कायनात ख़ामोशी से

मुट्ठी में रेत उठाये चला था जैसे मैं
आहिस्ता-आहिस्ता सरकती गई हयात ख़ामोशी से


1 comment:

manvinder bhimber said...

मुट्ठी में रेत उठाये चला था जैसे मैं
आहिस्ता-आहिस्ता सरकती गई हयात ख़ामोशी से
bada khoobsursat khayal hai