Friday, December 12, 2008

ज़िंदगी ने एक रोज़ मुझे...

ज़िंदगी ने एक रोज़ मुझे तेरा पता दिया
चंद गुलाब खिले दरम्याँ, साँस-साँस महका दिया

क़तरा-क़तरा पिघलता रहा चाँद आँखों में सारी रात
तेरी हँसी ने जाने ये क्या गुल खिला दिया

ख्वाहिशों की मुंडेर पर पिछली शब कोई परिंदा था
इस दर्द से चहका के भरी नींद से जगा दिया

तेरी राह में काँटे सही मगर मेरे हमसफ़र, कह दो-
तूने मुझे अपना सफर, अपनी मंज़िल, अपना रास्ता दिया


10 comments:

ss said...

क़तरा-क़तरा पिघलता रहा चाँद आँखों में सारी रात"
khubsurat shabd diye bhavnaon ko aapne.

दिनेशराय द्विवेदी said...

रचना के भाव व बात अच्छी है. पर यह ग़ज़ल नहीं है और मीटर में भी नहीं है।

"अर्श" said...

बहोत ही बढ़िया लिखा है आपने बस जारी रहे
वेसे ,दिनेश जी के बात से सहमत हूँ मगर लिखते लिखा बहोत खुच सिखाने को मिलेगा ... बेहतर भाव केलिए ढेरो बधाई आपको

अर्श

Vinay said...

आते-आते सब आता है कौन कैसे लिखता है यह ज़रूरी है पर इससे ज़रूरी है कि क्या लिखता है!

क्षितीश said...

मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा ना कोई दलील दूँगा, कि आप के सामने जो भी मैं पेश कर रहा हूँ, वो मेरी आज से ४-५ साल पहले की लिखी चीज़ हैं... आप इसे ग़ज़ल माने या ना माने, आगे आपकी मर्ज़ी.. बाकी, अर्श भाई और विनय जी की हौसला-आफ़जाई का शुक्रिया... !!!

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

क़तरा-क़तरा पिघलता रहा चाँद आँखों में सारी रात
तेरी हँसी ने जाने ये क्या गुल खिला दिया

Anonymous said...

तेरी राह में काँटे सही मगर मेरे हमसफ़र, कह दो-
तूने मुझे अपना सफर, अपनी मंज़िल, अपना रास्ता दिया...

सुन्दर.

Anonymous said...

ख्वाहिशों की मुंडेर पर पिछली शब कोई परिंदा था
इस दर्द से चहका के भरी नींद से जगा दिया

तेरी राह में काँटे सही मगर मेरे हमसफ़र, कह दो-
तूने मुझे अपना सफर, अपनी मंज़िल, अपना रास्ता दिया
waah kya sundar baat kahi,dil ki baat ho jaise,badhai.

Puja Upadhyay said...

ख्वाहिशों की मुंडेर पर पिछली शब कोई परिंदा था
इस दर्द से चहका के भरी नींद से जगा दिया
mujhe ye sher behad pasand aaya...bilkul jaise raat ka manjar aankhon ke samne aa gaya. rahi baat gazal ke baki naptol ki to aapke upar nirbhar karta hai ki aap usmein bandhte hain ya nahin.
mere liye to agar rules ke hisab se hai to accha, na bhi ho to parvaah nahin.
andaze bayan accha hai.

रंजू भाटिया said...

तरा-क़तरा पिघलता रहा चाँद आँखों में सारी रात
तेरी हँसी ने जाने ये क्या गुल खिला दिया


behtreen likhte hain aap