कोशिशें बेहतर, मुसलसल कर
ज़िंदगी मुअम्मा सही, हल कर
इस दुनिया में तेरे दुश्मन बहुत हैं
ऐ दिल, जरा सम्हल कर
ज़िंदगी रेहन न रख अँधेरे के
गुम हुआ नहीं है शम्स ढल कर
दुनिया खड़ी है इंतज़ार में तेरे
दायरे से अपने आ तो निकल कर
मुनासिब है एक चाँद हो सब के लिए
क्यों ना ढूँढें उसे चल कर
बहुत हो गया चलना बच-बच के
आ देखें दुनिया को बदल कर
2 comments:
कोशिशें बेहतर, मुसलसल कर
ज़िंदगी मुअम्मा सही, हल कर
इस दुनिया में तेरे दुश्मन बहुत हैं
ऐ दिल, जरा सम्हल कर
bahut sunder
आपकी प्रोफाइल पढ़ी, बेहद अच्छी लगी. शामें उदास कर देती हैं, मैं भी सहमत हूँ. उदासी को काफ़ी खूबसूरत ढंग से बयां किया है आपने. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ. अच्छा लिखते हैं आप. लेआउट भी बेहद खूबसूरत लगा, और हेडर की पंक्ति भी. पहली बार किसी के ब्लॉग पर आ कर इतना मोहित हो जाना मेरे साथ कम ही होता है. इतने अच्छे ब्लॉग के लिए बधाई. ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है.
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