Friday, November 28, 2008

वस्ल के दिन याद आए...

वस्ल के दिन याद आए, हिज़्र की रातें याद आईं
तुम याद आए तो न जाने कितनी बातें याद आईं

पहरों-पहर पहलू में जब खामोश धड़कते थे दो दिल
चुपचाप-सी पहले-पहल की वो मुलाकातें याद आईं

बूँद-बूँद रूह को भिंगोने की ख़्वाहिश रखती हों जैसे
तेरे गुनगुनाते लबों से नज़्मों की वो बरसातें याद आईं

थोड़ा-सा दर्द, थोड़ी-सी तड़प और थोड़े-से आँसू
जाते-जाते जो तुम दे गए, आज वो सौगातें याद आईं


3 comments:

"अर्श" said...

पहरों-पहर पहलू में जब खामोश धड़कते थे दो दिल
चुपचाप-सी पहले-पहल की वो मुलाकातें याद आईं

umda likha hai aapne wah dhero badhai aapko sahab.....

Anonymous said...

Bahut achche.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

charon or dard hee dard hai. narayan narayan