Monday, November 24, 2008

अज़ीब दिल है...

अज़ीब दिल है, दर्दे-दिल को ढूँढता है
कोई मक़तूल अपने क़ातिल को ढूँढता है

सरे-शाम से चरागे-चश्मे-नम लिए
एक मुसाफिर अपनी मंजिल को ढूँढता है

कभी अपने खाली हाथ देखता है तो कभी
गुज़श्ता उम्र के हासिल को ढूँढता है

उठकर चला तो आया अपनी रौ में मगर
रह-रहकर तेरी ही महफ़िल को ढूँढता है

दरिया के एक किनारे खड़ा है और
दरिया के दूसरे साहिल को ढूँढता है

इस दश्त में हर दरख्त तन्हा-तन्हा-सा
अबकी बहार में अनादिल को ढूँढता है


3 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

uf! itna dard. kalyan ho. narayan narayan

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर।

शोभा said...

दरिया के एक किनारे खड़ा है और
दरिया के दूसरे साहिल को ढूँढता है

इस दश्त में हर दरख्त तन्हा-तन्हा-सा
अबकी बहार में अनादिल को ढूँढता है
सुन्दर अभिव्यक्ति।