Friday, November 28, 2008

लेकिन!

मैं सोचता था-
तुम्हारे होठों के
खुलते-बंद होते
सीपियों में
मुस्कुराहटों के
अथाह मोती हैं
शायद तुम
उनमें से कुछ
मुझे भी दोगे...
शायद मैं
उन्हें लेते-लेते
थक जाऊँगा,
पर वो कभी ख़त्म न होंगे...

लेकिन,
मुझे क्या पता था-
कि एक दिन जब
तुम चले जाओगे
वो... तुम्हारी मुस्कुराहटों के मोती...
मेरी आँखों में
आँसू बनकर रह जाएँगे!

मैं थक गया हूँ
इन्हें पोंछते-पोंछते
पर ये
ख़त्म नहीं होते...

सोचता हूँ-
मैंने ऐसा तो नहीं सोचा था?