मुझे चरागों से क्या, कि मेरे पास तुम हो
अब अँधेरे का डर किसे है, चाहे तो
हर चराग़ बुझा दे हवा, कि मेरे पास तुम हो
ग़म नहीं, गो ज़माने से मिला नहीं
और कुछ ग़म के सिवा, कि मेरे पास तुम हो
क्यों शोर मचाती है दुनिया, ले जाए
जो उसने है दिया, कि मेरे पास तुम हो
कल की परवा क्यों करें, अब है यकीं
दर्द को बना लेंगे दवा, कि मेरे पास तुम हो
मुबारक हो उस जहाँ को ये खुदाई, अब यहाँ
कौन खुदा, कैसा खुदा? कि मेरे पास तुम हो
4 comments:
बेहतरीन!
कल की परवा क्यों करें, अब है यकीं
दर्द को बना लेंगे दवा, कि मेरे पास तुम हो
bhut khub.ati uttam.likhatr rhe.
aap regularly nahi likhte par likhte hain to itna hota hai ki mujhe bahut homework karna padta hai. main kam se kam 2 baar ek ek kavita padhti hoon.. behtareen ji.
acha hai ki mere pas tum ho :)
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