
कई बार यूँ भी होता है कि दिल में
आरजू1 की लौ कोई जगमगाती है,
दर्द से बोझिल पलकों से मगर
अश्क़2 गिरते हैं, शमाँ बुझ जाती है
बुझी-बुझी सी जिंदगी,
सुलग कर रह जाती है...!
दिल की रविश3 पर बस खार4 ही खार
तमन्ना दूर खड़ी सोच में पड़ जाती है,
क़दम वापस खींच लेती हैं खुशियाँ
उझक कर हसरतें5 भी लौट जाती है
झिझकी हुई सी जिंदगी,
ठिठक कर रह जाती है...!
दर्द की गिरफ्त में तन्हाईयों6 से घिरी
जिंदगी खुद को बेबस-सी पाती है,
बन्द दरीचे7 पर दस्तक देती है मुहब्बत
टीस दिल के टुकड़े कर जाती है
टूटे काँच सी जिंदगी,
दरक कर रह जाती है...!
बुझी-बुझी सी जिंदगी,
सुलग कर रह जाती है...!
1. इच्छा, आकांक्षा 2. आँसू 3. पगडंडी 4. काँटे 5. इच्छा, आकांक्षा 6. अकेलापन 7. खिड़की, झरोखा
आरजू1 की लौ कोई जगमगाती है,
दर्द से बोझिल पलकों से मगर
अश्क़2 गिरते हैं, शमाँ बुझ जाती है
बुझी-बुझी सी जिंदगी,
सुलग कर रह जाती है...!
दिल की रविश3 पर बस खार4 ही खार
तमन्ना दूर खड़ी सोच में पड़ जाती है,
क़दम वापस खींच लेती हैं खुशियाँ
उझक कर हसरतें5 भी लौट जाती है
झिझकी हुई सी जिंदगी,
ठिठक कर रह जाती है...!
दर्द की गिरफ्त में तन्हाईयों6 से घिरी
जिंदगी खुद को बेबस-सी पाती है,
बन्द दरीचे7 पर दस्तक देती है मुहब्बत
टीस दिल के टुकड़े कर जाती है
टूटे काँच सी जिंदगी,
दरक कर रह जाती है...!
बुझी-बुझी सी जिंदगी,
सुलग कर रह जाती है...!
1. इच्छा, आकांक्षा 2. आँसू 3. पगडंडी 4. काँटे 5. इच्छा, आकांक्षा 6. अकेलापन 7. खिड़की, झरोखा
2 comments:
achcha jab zindagi boojhi boojhi si lagne lagi to kya karna chchiye?ye be kuch likh kar bata deejiye!!
उस सवाल का जवाब तो अब तक ढूँढ रहा हूँ मैं, मिलते ही बता दूँगा...!!!
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