Monday, June 23, 2008

जिसे चाहा था...

जिसे चाहा था, उसका साथ न मिला
मेरी तरफ बढ़े प्यार से, वो हाथ न मिला

मैंने तलाशा तो हसीं बुत कई मिल गए
मेरे दर्द को अपना कहे, वो जज्बात न मिला

हसरतों को हासिल नहीं कुछ अश्कों के सिवा
तमन्ना ढूँढकर हारी, हँसी का सुराग न मिला

दिल का आलम हो कि खिजाँ का मौसम
उड़ते परिंदों को सब्ज कोई शाख न मिला


2 comments:

रंजू भाटिया said...

मैंने तलाशा तो हसीं बुत कई मिल गए
मेरे दर्द को अपना कहे, वो जज्बात न मिला

बहुत खूब ...सच में आज कहाँ है दुनिया में दूसरों के दर्द को अपना बनाने वाले ..

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा.