Sunday, June 1, 2008

रंग गया, नूर गया...

रंग गया, नूर1 गया, जिंदगी की रानाईयाँ2 गईं
आँखों से दूर कहीं ख़्वाबों की परछाईयाँ गईं

उड़ती फिरती थीं बागे-हयात3 में गुनगुनाती हुई
कितनी शोख4 थीं वो मशर्रत5 की तितलियाँ, गईं!

पहले से ही क्या कम थे जो मेरी राहों में
बिछा के काँटे कुछ और, तुम्हारी नजदीकियाँ6 गईं

मैं तो अपने दिल को कुछ समझा भी ना सका
शायद तुम्हें पता हो, पूछूँ, कहाँ मेरी खुशियाँ गईं?

1. रोशनी, प्रकाश 2. सुन्दरता, श्रृंगार 3. जीवन-रूपी बाग़ 4. नटखट, चंचल 5. आनंद, प्रसन्नता 6. सामीप्य


1 comment:

प्रदीप मानोरिया said...

उड़ती फिरती थीं बागे-हयात3 में गुनगुनाती हुई
कितनी शोख4 थीं वो मशर्रत5 की तितलियाँ, गईं!