Sunday, October 30, 2011

जेरे-लब ये हँसी नन्ही-सी...

जेरे-लब ये हँसी नन्ही-सी
कहकशाँ में धुली चाँदनी-सी

सुरमई रात, दिल का आँगन
और तुम, कोई परी-सी

तुम, मैं और ये जज़्बात
चाँद, रात और मयकशी-सी

बिखरी-बिखरी निखरी-निखरी
हर तरफ इक रोशनी-सी

सौ अंजुम यकहा जल उठे
यूँ रुखसार पे लौ लहकी-सी

लम्हों के ज़िस्म पर तेरा लम्स
लिख रही दास्ताँ अनकही-सी


1 comment:

दिगम्बर नासवा said...

Kamaal ki gazal ... Kuch juda juda se khyaalat .. Main Bhi Dubai mein hi rahta Hun ... Umeed hai kabhi mulakat hogi ...