Monday, September 26, 2011

दर्द से भींगती रहीं आँखें...

दर्द से भींगती रहीं आँखें, परवाह न किया
हाथ रखा सीने पर, फिर भी आह न किया

यूँ तो मुझसे भी हँसकर मिली थी ख़ुशी
दो पल से मगर ज्यादा निबाह न किया

सूखी धरती, बंजर सपने, बयाबान दिल
मेरी तरह किसी ने जिंदगी तबाह न किया

मुन्तजिर रहकर एक उम्र काट दी मैंने
किसी ने मगर, इस तरफ निगाह न किया


7 comments:

क्षितीश said...

हौसला-अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया यशवंत जी...

Rajesh Kumari said...

kitna dard hai in lafjon me..
bahut achcha likhte ho.god bless you.mere blog par bhi aana...silsila badhta rahe.i m following you.

रेखा said...

वाह ...बहुत खूब

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

मुन्तजिर रहकर एक उम्र काट दी मैंने
किसी ने मगर, इस तरफ निगाह न किया

क्या खूब....

Dr.NISHA MAHARANA said...

good expression.

smilekapoor said...
This comment has been removed by the author.
smilekapoor said...

मेरे दोस्त ! ख़ुशी से भी निबाहने की क्या उम्मीद लगाते हो..?
उसकी जर्रेनावाज़ी है की कभी कभी मिल भी लेती है...इतनी संगदिल दुनिया में.
वरना उन् दो पलों के सिवा और रखा ही क्या है..यादों के गुंचे में...?