Sunday, September 11, 2011

चाँद नहीं उगेगा कभी


रात जनाज़ा निकला था चाँद का
सितारे आए थे मय्यत में रोने,
आसमाँ ने अपने हाथों
एक सफ़ेद-शफ्फाफ-सा अब्र
ढक दिया था लाश के बदन पर...
बतौर कफ़न

और मैं, खामोश ये दर्द पी रहा था
जब तुमने मेरे हाथों में थमा दी थी कुदाल
मैंने अपने दिल की ज़मीन पर
आहिस्ते-से एक छोटा सा कब्र खोदा
और उसकी लाश कर दी मैंने...
चुपके से दफ़न

अब से मेरी हसरतों के आसमान पर
चाँद नहीं उगेगा कभी...!


3 comments:

shikha varshney said...

उफ़ मार्मिक...

smilekapoor said...

Bohot badhiya mitra!
'Akshar Sannaton ki aawaz Gazal ban jati hai...'
Mere dost...sach me akshar Sannaton me kuchh gunjta hota hai...sunta hai to koi sayar sunta hai...aur gazal likhta hai....

दिगम्बर नासवा said...

बहुत दर्दभर ... मार्मिक लिखा है ...