तुम्हारी कसम, हम थोड़ा सा बहक जायेंगे
शोलों को ग़र देती रही यूँ ही तुम हवा
बेशक़ इक रोज़ हम भी दहक जायेंगे
अब तो अक्सर ये हाल रहेगा तुम्हारा
सोचोगी मुझे और आँचल ढलक जायेंगे
छोडो भी शरमाना, पलकों को यूँ झुकाना
ये जो मय है आँखों में, छलक जायेंगे
अब जो छत पे आना, जरा चुपके से आना
राज़ खुल जाएगा, ग़र पाज़ेब खनक जायेंगे
कभी ये ग़ज़ल मेरी तुमसे मिले कहीं तो -
मिल बैठना, बातें करना, रुखसार दमक जायेंगे
2 comments:
Hostel yaad aa gaya.
haan Sawan jee... mujhe bhi
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