छलकता हुआ पैमाना यहीं कहीं था
लोग आते थे सजदे को दूर-दूर से
सुना है - इक बुतखाना यहीं कहीं था
जिंदगी से ऊबकर आता था मैं जहाँ
वो मेरा ठिकाना यहीं कहीं था
कोई पूछे तो कहते थे लोग
हाँ, एक दीवाना यहीं कहीं था
अभी-अभी रोया था मैं, और
उसका शाना यहीं कहीं था
मेरे हमदम, मेरे गमगुसार का
शायद आशियाना यहीं कहीं था
2 comments:
nice post....
Wah...क्षितीशji Subhanallah
apane facebook profile par bhi isaki link share kar diya hai aapki anumati ke bina..
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