Friday, June 19, 2009

टूट कर बिखरा, तारा था कोई...

टूट कर बिखरा, तारा था कोई
दिल भी मेरा बंजारा था कोई

सहरा-सहरा, दरिया-दरिया
भटका बहुत, आवारा था कोई

तमाम उम्र तन्हाईओं के तले रहा
कितना बेआसरा-बेसहारा था कोई

ज़िक्र भूले से मेरा जो आ गया
इतना कहा- 'बेचारा था कोई'

उनको हमसे कोई वास्ता ही नहीं
कैसे कहें कि हमारा था कोई

काश! हम भी उनको प्यारे होते
कि हमको भी प्यारा था कोई


7 comments:

"अर्श" said...

BAHOT HI KHUBSURAT BHAV DAALE HAI AAPNE RACHANAA PASAND AAYEE AAPKI..BADHAAYEE


ARSH

वीनस केसरी said...

उनको हमसे कोई वास्ता ही नहीं
कैसे कहें कि हमारा था कोई

वाह क्या बात है, बहुत सुन्दर

वीनस केसरी

ओम आर्य said...

gajal ki har ek panktiyan ......sundar bhaaw liye huye......

दिगम्बर नासवा said...

ज़िक्र भूले से मेरा जो आ गया
इतना कहा- 'बेचारा था कोई

वाह बहुत खूब लिखा है.........लाजवाब ग़ज़ल..... आस पास बिखरे हुवे शब्दों से सजी

art said...

काश! हम भी उनको प्यारे होते
कि हमको भी प्यारा था कोई
bahut hi pyaari kavita likhi hai...bahut hi sachhe se bhaav liye hue.......

ज्योति सिंह said...

kya kahoon ?bahut hi khoob soorat .sochane ke kaabil nahi rahi bas kho gayi har shabd me .

पारुल "पुखराज" said...

उनको हमसे कोई वास्ता ही नहीं
कैसे कहें कि हमारा था कोई

vaah!