मेरा प्यार प्यार है, कोई हवस नहीं मुझे तेरी चाहत है, कोई तलब नहीं वो तो मेरा चेहरा ही नक़ाब बन गया यूँ निहाँ होती मिरी शख्सियत नहीं काश के तूने दिल को दी होती तवज्जो दौलते-दो-जहाँ की थी तुझे जरुरत नहीं साँस है कि मुसलसल है यूँ ही आज भी गो रास कोई आती मुझे रवायत नहीं सोचता हूँ के आज वो आएँ तो कह दूँ नहीं मेरे ख़्वाबों, आज तबियत नहीं तलब = लालसा, desire; नक़ाब = परदा, mask; निहाँ = आवृत, covered; शख्सियत = व्यक्तित्व, personality; तवज्जो = प्राथमिकता, priority; मुसलसल = निरंतर, continued; गो = यद्यपि, although; रवायत = रिवाज, tradition
1 comment:
वाह....
बेहतरीन गज़ल....
आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हुआ.
अनु
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