Sunday, February 5, 2012

तन्हाईयों का सबब है आदमी...

तन्हाईयों का सबब है आदमी
यूँ तो फिर तनहा कब है आदमी

कभी खलिश, सुकूँ, कभी खला
रूहो-ज़िस्म का तलब है आदमी

एक दिल, और वो भी पशेमाँ
कितना बेवज़ह-बेमतलब है आदमी

हर शख्स के हैं दो चेहरे यहाँ
खुद ही देव, खुद ही रब है आदमी

दो अलग उन्वान हैं आदमी-ओ-इन्सां
के पहले इन्सां हो ले, तब है आदमी


(खलिश = चुभन, खला = शून्य, तलब = कामना,
पशेमाँ = लज्जित, देव = शैतान, उन्वान = शीर्षक)


2 comments:

दिगम्बर नासवा said...

Lajawab gazal hai ... Har sher pe daad nikal rahi hai ... Subhan alla ...

क्षितीश said...

शुक्रिया दिगम्बर जी...