Sunday, August 28, 2011

उदास आँखों का ख्वाब...



बस वही उदास आँखें, और उदास आँखों का ख्वाब
यही दो जहाँ मेरे, यही दो जहाँ का असबाब

एक-एक सतर, एक-एक सफहा, एक-एक बाब
'जिंदगी' उन्वान है जिसका, पढ़ता रहा हूँ वही किताब

यहीं कहीं दिलों की पनाह में एक आशियाँ हो मेरा
फिर क्या करना है दोज़खो-बहिश्त, अज़ाबो-सवाब

मैं अपने तौर पर जीने निकला हूँ, जी लूँगा
दुनिया, तू अपने ही पास रख अपने आदाब

मैंने दिल में मुहब्बत के चराग़ जला रखे हैं
वो चराग़ जिससे रश्क खाते हैं आफ्ताबो-माहताब

इक नूर से रोशन हैं लम्हा-लम्हा वादियाँ मेरे दिल की
देखें अब तारीकियाँ होती हैं किस तरह कामयाब

वक़्त की नज़र बचाकर चुरा रखा था मैंने जिसे
अक्सर तन्हाइयों में भीने-भीने महकता है वो गुलाब

बारहा सन्नाटों की आवाज़ ग़ज़ल बन जाती है
ये ग़ज़ल किसलिए? मुझसे पूछते हैं मेरे अहबाब


5 comments:

PD said...

वाह.. क्या लिखा है..
मैं अपने तौर पर जीने निकला हूँ, जी लूँगा
दुनिया, तू अपने ही पास रख अपने आदाब

दोस्त, मुझे भी गजल लिखना सिखा दो... :)

Harshit Gupta said...

are sirjee..

kahan the aap.. blog pe vaapasi.. tahedil se istaqbal karte hain aapka is duniya mein..

sach batayen to padh ke maza aa gaya..

thoda zyada sach batayen to doosre sher ke saamne hum billi ban gaye.. na satar pata hai aur na safha, sar ke oopar se guzar gaya.. thodi madad bhi likh daliye hum jaise anpadh fans ke liye..

क्षितीश said...

प्रशांत भाई, सच्ची कहूँ तो ग़ज़ल लिखनी मुझे भी नहीं आती... ये वाकई ग़ज़ल नहीं है, क्यूँकि 'मीटर' में नहीं है... कोई गुरु तो मुझे भी चाहिए सीखने के लिए...!!!

क्षितीश said...

हर्षित भाई, ऐसे भिंगा के तो ना मारो ब्लॉग पे... आगे से ख्याल रखूँगा... अभी ये सिर्फ तुम्हारे लिए...

सतर- Line, सफहा- Page, बाब- Chapter, उन्वान- Title...

अब फिर से पढो...

एक-एक सतर, एक-एक सफहा, एक-एक बाब
'जिंदगी' उन्वान है जिसका, पढ़ता रहा हूँ वही किताब

onkar said...

hi Ranjan, good to see one complete gazal. Please do keep on writing. You have it in you.

Onkar