Saturday, November 10, 2012

दिन वो बहुत याद आते हैं...



चाँद कटोरा 
मन खटोला 
कटोरे से माँ खिलाती थी 
दिन वो बहुत याद आते हैं 

मीठी झिरकी 
पाँव फिरकी 
झिड़क के माँ पछताती थी 
दिन वो बहुत याद आते हैं 

दोस्त क़िताब 
दिल में ख्व़ाब 
क़िताब नया कुछ सिखाती थी 
दिन वो बहुत याद आते हैं 

बासी रोटियाँ 
बुझी अंगीठियाँ 
कभी यूँ भी गुज़र जाती थी 
दिन वो बहुत याद आते हैं 

सपने परिंदे 
आँख उनींदे 
परिंदों सी कोई ख़्वाब में आती थी 
दिन वो बहुत याद आते हैं 

और अब... सच हैं कड़वे 
टूटे सपने / दूर अपने 
भरा पेट / भरी आँखें 

नहीं पता था - 
पेट भरने में आँखें भी भर आती हैं 
ज़िंदगी परिंदों-सी उडती जाती है 
चाँद का कटोरा खाली-सा लगता है 
कोई आता नहीं, उम्र गुज़र जाती है 

सच - 
दिन वो बहुत याद आते हैं !



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