कि शायद,
तुम्हारी हँसी सुने बगैर
गुंचे खिलें ही नहीं!
हँसो-
कि शायद,
तुम्हारी हँसी सुनकर
धनक फूटते हों कहीं!
हँसो-
कि तुम्हें हक़ है
हँसने का -
मुझ पर भी!
मेरी तो आदत है-
कोई हँसे,
तो लगता है-
कहीं मुझ पर तो नहीं!
हँसो-
हो सके तो
मेरे आँसुओं पर भी -
कि मेरे आँसू,
तुम्हारी हँसी से
ज्यादा कीमती नहीं!
7 comments:
बहुत बढ़िया.
बहुत खूब भाई ....
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बहुत ही खूबसूरत रचना । हंसी का प्रभाव मारक होता है । इसे भी पढ़े - नया प्रयत्न: आपका हँसना
बहुत बढ़िया..अब हंसने के भी कितने कारण बता दिए आपने..
wa wa wa ....kavi maharaaj..
bahut acchaa hai...last 4 line are really good..
हँसो-
हो सके तो
मेरे आँसुओं पर भी -
कि मेरे आँसू,
तुम्हारी हँसी से
ज्यादा कीमती नहीं
vaah.......लाजवाब लिखा है............किसी की हंसी कितनी important हो जाती है
बढ़िया लिखे हो क्षितिज.. तुम्हारा ब्लॉग गुम हो गया था, आज अचानक तुम्हारे FB Wall से वापस मिल गया.. पुराने सारे पोस्ट एक साथ पढ़ने को भी मिला.. बढ़िया, बहुत बढ़िया..
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