Monday, June 30, 2008

कुछ तुम भी मगरूर थे...

कुछ तुम भी मगरूर थे, कुछ मैं भी मगरूर था
अगरचे ना तुम मजबूर थे, ना मैं मजबूर था

एक जिद के झोंके ने दो कश्तियाँ, मोड़ दीं दो तरफ
वरना दूरियों का ये ग़म किस कमबख्त को मंजूर था

खतामंदी का अहसास दफ़न किये हम अपने सीने में
कहाँ तक बहलायें दिल को, सब वक़्त का कुसूर था

ये तो नहीं कि मेरी नज़रों को धोका हो गया
तुम्हारी जानिब से भी हल्का-सा कोई इशारा ज़रूर था

दिल ही मेरा नादाँ निकला, यकीं कर बैठा
यूँ जमाने में शोख नज़रों का मुकर जाना मशहूर था

एक तुझसे ही क्यों हो शिकायत मुझे ज़माने में
हर किसी के जब लब पर यहाँ जी-हुज़ूर था


बहुत रोयेंगे हम...

बहुत रोयेंगे हम तुम्हें याद करके
देखेंगे हर चेहरे में तेरा चेहरा ईजाद करके

और करेंगे भी क्या तेरे बगैर हम
बैठे रहेंगे मुद्दतों दिल नाशाद करके

वक्ते-बेरहम से किया करेंगे सवाल
क्या मिला उसे यूँ हमें बरबाद करके

जीस्ते-नाशाद को बहलाएँगे तो कैसे
मिलेगा भी क्या किसी से फरियाद करके

चाहा था साथ तुम्हारे मुस्कुराना, मगर
अश्क पाया हमने तुम पर एतमाद करके

तेरी क़ुर्बत के सिवा और किसी शै में
असर कहाँ, कि जाए हमें शाद करके

चले जा रहे हो और ही जहाँ में तुम
ग़मे-फिराक सीने पर हमारे लाद करके

और हमारी जिंदगी में अब बचा ही क्या
बस एक बारे-ग़मे-जिंदगी को बाद करके


Monday, June 23, 2008

रोशन है मेरी रात...

रोशन है मेरी रात कि मेरे पास तुम हो
मुझे चरागों से क्या, कि मेरे पास तुम हो

अब अँधेरे का डर किसे है, चाहे तो
हर चराग़ बुझा दे हवा, कि मेरे पास तुम हो

ग़म नहीं, गो ज़माने से मिला नहीं
और कुछ ग़म के सिवा, कि मेरे पास तुम हो

क्यों शोर मचाती है दुनिया, ले जाए
जो उसने है दिया, कि मेरे पास तुम हो

कल की परवा क्यों करें, अब है यकीं
दर्द को बना लेंगे दवा, कि मेरे पास तुम हो

मुबारक हो उस जहाँ को ये खुदाई, अब यहाँ
कौन खुदा, कैसा खुदा? कि मेरे पास तुम हो


तुम हो मेरे आसपास...

तुम हो,
मेरे आसपास-
हर पल, हर कहीं
बस तुम,
और...
और कुछ नहीं!

साँझ की चौखट पर
जलता हुआ एक दीया-
मेरे इंतज़ार में ही शायद
कहीं तुम हो.

भोर की देहरी पर
नरम-सी धूप का स्पर्श-
जैसे तुम्हारी हथेलियों ने
छुआ हो मुझे,
कुनमुना कर टूट जाती है नींद
और देखता हूँ-
सामने तुम हो.

शायद यह वहम हो मेरा,
पर...
तुम हो,
मेरे आसपास-
हर पल, हर कहीं...!!!


जिसे चाहा था...

जिसे चाहा था, उसका साथ न मिला
मेरी तरफ बढ़े प्यार से, वो हाथ न मिला

मैंने तलाशा तो हसीं बुत कई मिल गए
मेरे दर्द को अपना कहे, वो जज्बात न मिला

हसरतों को हासिल नहीं कुछ अश्कों के सिवा
तमन्ना ढूँढकर हारी, हँसी का सुराग न मिला

दिल का आलम हो कि खिजाँ का मौसम
उड़ते परिंदों को सब्ज कोई शाख न मिला


जब भी दिल उदास होता है...

जब भी दिल उदास होता है, तेरे पास चला आता हूँ मैं
बहाने से छूकर तेरा हाथ, अपना ही दर्द सहलाता हूँ मैं

बस एक तुम होते हो साथ मेरे, तो तन्हाई साथ नहीं होती
यूँ भीड़ में खुद को कुछ ज्यादा ही तन्हा पाता हूँ मैं

तुम्हारे रंजो-ग़म पर कुछ तो आखिर हक हो मेरा
कि अपने दिल को तेरे दर्द का लिबास पहनाता हूँ मैं

दोस्त, अपने अह्सासे-दर्द से मुझे महरूम न कर
ये वही दर्द है जिससे अपना दिल बहलाता हूँ मैं


Sunday, June 1, 2008

जब भी देखोगे मुझे...

जब भी देखोगे मुझे इसी हाल में पाओगे,
आँख में आँसू, लबों1 को हँसता हुआ पाओगे

तुम्हारा तो खैर यकीन2 है मुझे खुद से ज्यादा,
आँसू दिया है जब आज तो कल भी रुलाओगे

मेरा क्या है? एक अदना3-सा आदमी ही तो हूँ
आखिर कब तक मुझे तुम याद रख पाओगे?

मुझे तो अपनी ख़ाक4 पर भी कोई हक़ नहीं,
हर उम्मीद है झूठी, क्यों कोई उम्मीद दिलाओगे?

1. होंठों 2. विश्वास 3. तुच्छ 4. राख, धूल


बुझी-बुझी सी जिंदगी

कई बार यूँ भी होता है कि दिल में
आरजू1 की लौ कोई जगमगाती है,
दर्द से बोझिल पलकों से मगर
अश्क़2 गिरते हैं, शमाँ बुझ जाती है

बुझी-बुझी सी जिंदगी,
सुलग कर रह जाती है...!

दिल की रविश3 पर बस खार4 ही खार
तमन्ना दूर खड़ी सोच में पड़ जाती है,
क़दम वापस खींच लेती हैं खुशियाँ
उझक कर हसरतें5 भी लौट जाती है

झिझकी हुई सी जिंदगी,
ठिठक कर रह जाती है...!

दर्द की गिरफ्त में तन्हाईयों6 से घिरी
जिंदगी खुद को बेबस-सी पाती है,
बन्द दरीचे7 पर दस्तक देती है मुहब्बत
टीस दिल के टुकड़े कर जाती है

टूटे काँच सी जिंदगी,
दरक कर रह जाती है...!

बुझी-बुझी सी जिंदगी,
सुलग कर रह जाती है...!

1. इच्छा, आकांक्षा 2. आँसू 3. पगडंडी 4. काँटे 5. इच्छा, आकांक्षा 6. अकेलापन 7. खिड़की, झरोखा


आ, कि जरा देर रो लें हम

वफ़ा की वफात1 पर
इस हजीं2 वारदात3 पर
आ, कि जरा देर रो लें हम

कल को आँखें तरस ना जाएँ
बूँदें शायद फ़िर बरस ना पायें
अश्कों की बारिश में दिल को
क्यों न आज भिंगों लें हम
आ, कि जरा देर रो लें हम

स्याही4 चेहरे पर दर्द की
कई दिन से है बिखरी हुई
चलो जतन कोई करें मिलकर
ये रंग चेहरे का धो लें हम
आ, कि जरा देर रो लें हम

बेकसी5 है, तरावट6 नहीं
किसी के आने की आहट नहीं
इस उदासी को, इस खामोशी को
रूह7 की पहनाई8 में समो लें हम
आ, कि जरा देर रो लें हम


रूह भी, जिस्म9 भी
थक गया साँसों का तिलिस्म10 भी
मसरूफियों11 को कर दें दरकिनार12
मिलकर गले चार पल सो लें हम
आ, कि जरा देर रो लें हम

सारे अरमाँ ख़ाक13 हो चले
हम फिर से खाली हाथ हो चले
चंद कलियाँ निशात14 की चुराएँ
ख्वाब थोड़े-से फिर संजो लें हम
आ, कि जरा देर रो लें हम

कुछ ज़ख्म तेरे भी
कुछ ज़ख्म हैं पास मेरे भी
ज़ख्म दोनों के दूर-दूर क्यों रहें
दर्द है एक जैसा, साथ पिरो लें हम
आ, कि जरा देर रो लें हम

इस गमे-हयात15 पर
दिल और दर्द के ताल्लुकात16 पर
आ, कि जरा देर रो लें हम

1. मौत, मृत्यु 2. शोकपूर्ण 3. दुर्घटना 4. कालिमा 5. बेचैनी, विकलता 6. ताजगी 7. आत्मा 8. विस्त्रितता, विस्तार 9. शरीर 10. इन्द्रजाल, जादू 11. व्यस्तताओं 12. अलग, एक तरफ 13. राख 14. सुख, आनंद 15. जीवन के दुःख 16. संबंध


रंग गया, नूर गया...

रंग गया, नूर1 गया, जिंदगी की रानाईयाँ2 गईं
आँखों से दूर कहीं ख़्वाबों की परछाईयाँ गईं

उड़ती फिरती थीं बागे-हयात3 में गुनगुनाती हुई
कितनी शोख4 थीं वो मशर्रत5 की तितलियाँ, गईं!

पहले से ही क्या कम थे जो मेरी राहों में
बिछा के काँटे कुछ और, तुम्हारी नजदीकियाँ6 गईं

मैं तो अपने दिल को कुछ समझा भी ना सका
शायद तुम्हें पता हो, पूछूँ, कहाँ मेरी खुशियाँ गईं?

1. रोशनी, प्रकाश 2. सुन्दरता, श्रृंगार 3. जीवन-रूपी बाग़ 4. नटखट, चंचल 5. आनंद, प्रसन्नता 6. सामीप्य


तुम्हें देखा तो...

तुम्हें देखा तो भरी आँख भी मुस्करा गई
मेरे होंठों की हँसी हर ज़ख्म1 छुपा गई

मुद्दत2 बाद गुज़रे हो इस गली से तन्हा3
सोचता हूँ, बात क्या तुम्हें याद इधर की दिला गई?

एक मैं ही तो नहीं था तुम्हारे अपनों में कभी
बड़ी लम्बी क़तार4 थी, क्या ख़त्म होने को आ गई?

ख्वाहिश5 तो बहुत थी साथ तुम्हारे रहने की
पर क्या करें? आड़े तुम्हारे ही मजबूरियाँ आ गई

तुम से दूर होकर सिवा तड़प के कुछ हासिल तो नहीं
पर ये बोझ भी चुपके से हर साँस उठा गई

खैर यही सही, तुम खुश तो हो अपनों में
एक मेरी कमी क्या लेके तुम्हारा गई?

1. घाव 2. बहुत दिन, अरसा 3. अकेला 4. पंक्ति 5. इच्छा, चाह